
Balaghat Fake Caste Scam: मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है, जिसने वोट चोरी विवाद के बीच जाति आधारित आरक्षण पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। बोरी गांव में 80 से अधिक फर्जी जाति प्रमाण पत्र (Fake Caste Certificates) का खेल सामने आया है। इन फर्जी प्रमाणपत्रों के सहारे न केवल सरकारी समितियों में घुसपैठ हो रही है, बल्कि सरकारी नौकरियां और आरक्षण के अधिकार भी गलत हाथों में जा रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर यह घोटाला इतने लंबे समय से कैसे चल रहा है और अधिकारी चुप क्यों हैं?
ग्राम बोरी में एक ही परिवार के चार सदस्यों को तीन अलग-अलग जातियों के प्रमाणपत्र जारी हुए। किसी को मांझी, किसी को कहार और किसी को सिंगराहा जाति का प्रमाणपत्र मिला, जबकि पूरा परिवार सिंगरोड़ जाति से संबंधित है। यही नहीं, शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इन फर्जी प्रमाणपत्रों की मदद से कई लोगों ने सरकारी नौकरियां भी हासिल कीं।
ढीमर समाज संगठन के सचिव बेनीराम मेश्राम ने आरोप लगाया कि बोरी गांव ही नहीं, बल्कि आसपास के इलाकों में भी 80 से ज्यादा फर्जी प्रमाणपत्र बने हैं। मत्स्य सहकारी समिति मर्यादित पांढरवानी, राजीव गांधी सहकारी समिति बोरी और मिलन मछुआरा सहकारी समिति मर्यादित टेकाड़ी में इन फर्जी प्रमाणपत्र धारकों ने जगह बनाई है। इससे मूल मछुआरा समाज के सदस्य समितियों से बाहर हो रहे हैं।
व्हिसिल ब्लोअर शेखर जायसवाल का कहना है कि जाति प्रमाण पत्र बनाना आसान नहीं है। इसके लिए सरपंच, ग्राम पटेल और अधिकारियों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं। इस मामले की शिकायत एक साल पहले हुई थी और जांच समिति ने भी फर्जीवाड़े की पुष्टि की थी। बावजूद इसके, अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
जाति चोरी का यह मामला केवल स्थानीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय महत्व का है क्योंकि इससे आरक्षण व्यवस्था पर सीधा असर पड़ता है। फर्जी प्रमाणपत्र धारकों ने न सिर्फ नौकरियां हथियाईं, बल्कि असली हकदारों के अधिकारों को भी छीन लिया।
हाल ही में देशभर में Vote Fraud (वोट चोरी) की खबरें सुर्खियों में रही हैं, लेकिन बालाघाट का यह मामला इससे कहीं बड़ा है। यहां न केवल लोकतांत्रिक व्यवस्था, बल्कि सामाजिक न्याय की बुनियाद भी हिल रही है। लोगों का कहना है कि बालाघाट का यह जाति चोरी घोटाला भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता समाज के हकदार वर्ग को हाशिये पर धकेल रही है
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