घर में गरुण पुराण-खेत में मातम! छतरपुर में तीन सगे भाई बहन की एक साथ मौत

Published : Jul 15, 2025, 12:27 PM IST
Chhatarpur kids drown in farm pond

सार

जब पूरा परिवार बुजुर्ग की आत्मा की शांति के लिए गरुण पुराण सुनने में मग्न था, उसी वक्त तीन मासूम भाई-बहन खेत के पोखर में समा गए... छतरपुर के हटवा गांव से आई यह खबर आपको भीतर तक हिला देगी!

Chhatarpur pond accident: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के हटवा गांव में सोमवार शाम एक ऐसा दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जिसने पूरे गांव को सदमे में डाल दिया। प्रतिपाल सिंह के तीन मासूम बच्चे—लक्ष्मी (10), तनु (8) और लोकेंद्र (4)—बारिश के पानी से भरे खेत में बने एक पोखर में डूबकर एक साथ दुनिया छोड़ गए।

क्या हुआ था हटवा गांव में?

ये हादसा उस वक्त हुआ जब घर के भीतर गरुण पुराण का पाठ चल रहा था। कुछ दिन पहले ही परिवार में एक बुजुर्ग का निधन हुआ था और उसी की आत्मा की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठान किया जा रहा था। पूरा परिवार सत्संग में व्यस्त था और तीनों बच्चे स्कूल से लौटने के बाद खेत में आम के पौधे लगाने चले गए थे। बारिश के कारण खेत में पानी भर गया था और वहीं बना गड्ढा जानलेवा पोखर बन चुका था। बच्चों को उसकी गहराई का अंदाज़ा नहीं था। फिसलन और जलभराव के बीच तीनों उसमें डूब गए। जब तक परिवार को कुछ समझ आता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

मां की चीखों ने तोड़ी मातम की चुप्पी

छतरपुर के हटवा गांव में जब बच्चों की तलाश शुरू हुई और खेत की ओर देखा गया, तो तीनों के शव पोखर में दिखाई दिए। यह दृश्य इतना हृदयविदारक था कि मां की चीखें और गांव के लोगों का शोक से टूट जाना, पूरा माहौल गमगीन कर गया। गांव में चूल्हे नहीं जले, लोग सड़कों पर खड़े रहे और हर कोई एक ही सवाल कर रहा था—"क्या इन मासूमों की मौत रोकी नहीं जा सकती थी?"

छतरपुर में सिस्टम बना खामोश दर्शक 

इस हादसे ने एक बार फिर छतरपुर प्रशासन की लापरवाही को उजागर कर दिया। ग्रामीण इलाकों में बारिश के दौरान सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं होते। खेतों में बने पोखर बच्चों के लिए मौत के कुएं बन जाते हैं, लेकिन कोई अलर्ट, कोई चेतावनी, कोई घेराबंदी नहीं होती।

यह सिर्फ हादसा नहीं, एक चेतावनी  

हटवा गांव में तीनों बच्चों की मौत का दर्द सिर्फ उनके परिवार तक सीमित नहीं, बल्कि हर उस गांव के लिए एक सबक है, जहां बरसात में लापरवाह इंतज़ाम जानलेवा साबित हो सकते हैं। प्रशासन को चाहिए कि मॉनसून शुरू होने से पहले खेतों, पोखरों और जोखिम वाले क्षेत्रों की मैपिंग की जाए, चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं और ग्रामीणों को सतर्क किया जाए।

 अब भी समय है…जाग जाएं, इससे पहले कि अगली चिता जले 

हटवा गांव में लक्ष्मी, तनु और लोकेंद्र अब सिर्फ तस्वीरों और यादों में रह जाएंगे। उनकी छोटी सी उम्र में बड़ा सपना था—पेड़ लगाना, फल देखना…लेकिन सिस्टम की खामोशियों ने उनकी जिंदगी लील ली। 

 

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