
Seoni double murder case: मध्य प्रदेश के सिवनी ज़िले से एक ऐसा जघन्य अपराध सामने आया है जिसने रिश्तों के भरोसे को तोड़ दिया। भोजराम बेलवंशी नामक मौसा ने अपने साथी शुभम जावरे के साथ मिलकर दो सगे भाइयों—मयंक (कक्षा 4) और दिव्यांश (कक्षा 2)—की गला रेतकर हत्या कर दी और शवों को अंबामाई के घने जंगल में पत्थरों के नीचे दबा दिया।
सिवनी की सुभाष वार्ड बस्ती में नौ‑वर्षीय मयंक और छह‑वर्षीय दिव्यांश आम दिनों की तरह स्कूल से घर लौटे थे। शाम ढलते‑ढलते “साइकिल दिखाने” के बहाने उनका मौसा भोजराम बेलवंशी दोनों को साथ ले गया। मां पूजा धाकड़िया ने सोचा‑ रिश्तेदारी है, बच्चे सुरक्षित होंगे… इसी भूल ने ज़िंदगी भर का घाव दे दिया।
15 जुलाई की रात जब बच्चे घर नहीं पहुँचे, तो पूजा ने कोतवाली थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई। अगली सुबह डूंडा सिवनी पुलिस, डॉग स्क्वॉड और साइबर टीम तीन अलग‑अलग दिशाओं में तलाश में जुटे। ऑटो‑ड्राइवर ने सुराग दिया—“दोनों बच्चों को एक परिचित अंकल अंबामाई रोड पर उतारकर जंगल की ओर चला गया था।” मोबाइल‑लोकेशन मैच करते ही पुलिस की संदिग्ध सूची में भोजराम का नाम सबसे ऊपर आ गया।
17 जुलाई दोपहर, तलाशी दल ने अंबामाई जंगल के भीतर तीन किमी चलकर पत्थरों के ढेर पर कुत्तों को भौंकते देखा। पत्थर हटाए गए तो गला कटा शव सामने था—पहले छोटा भाई, थोड़ी दूरी पर बड़ा। मिट्टी में दबी खूनी चाकू की म्यान और भोजराम की बाइक से मैचिंग टायर‑प्रिंट ने केस को सीधा उसी तक पहुँचा दिया।
पुलिस अधीक्षक सुनील मेहता ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया—भोजराम लंबे समय से अपनी साले की पूर्व पत्नी पर बुरी नज़र रखता था। महिला के तलाक़ के बाद उसने “दोबारा शादी” का प्रस्ताव दिया, इनकार मिला तो बच्चों को बाधा मान लिया। साथी शुभम जावरे की मदद से उसने योजना रची। इसके लिए उसने तीन कदम उठाए…
दोनों को IPC 302 (हत्या), 364 (अपहरण), 201 (सबूत मिटाना) और POCSO की धाराओं में गिरफ़्तार किया गया है। फ़ास्ट‑ट्रैक कोर्ट में एक माह के भीतर चालान पेश होगा।
भोजराम ने सोचा था जंगल में नेटवर्क नहीं, मगर उसका फ़ोन रात 8:19 PM पर “लो‑रेज़ सिग्नल” टॉवर से पिंग हुआ। यही टाइम‑स्टैम्प पोस्ट‑मॉर्टम की “समय‑ए‑मौत” रिपोर्ट (8:15‑8:45 PM) से मेल खा गया। फुटेज में शुभम की बाइक टंकी पर बांधी रस्सी भी दिखी, जो घटनास्थल से बरामद हुई।
क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट डॉ. नीता राजपूत कहती हैं, “संबंधों का नकली स्नेह बच्चों को सबसे आसान जाल लगता है। माता‑पिता हर परिचित चेहरे को ‘सुरक्षित’ मानकर न छोड़ें; बच्चे को निर्णय का ‘सेफ़‑वर्ड’ सिखाएँ।”
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