83 साल की जोधइया बाई को मिला पद्म श्री: पढ़ी-लिखी नहीं...लेकिन अमेरिका-इंग्लैड के लोग भी करते हैं प्रणाम

Published : Jan 26, 2023, 04:50 PM ISTUpdated : Jan 26, 2023, 06:37 PM IST
padma shri awards 2023

सार

83 साल की जोधइया बाई मध्य प्रदेश के उमरिया जिल में लोढ़ा गांव की रहने वाली हैं। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। उन्होंने बैगा जनजाति की प्राचीन बैगिन चित्रकारी को दुनिया में प्रसिद्ध कर दिया।  

उमरिया (मध्य प्रदेश). गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर कल बुधवार शाम पद्म पुरस्कारों (Padama Awards 2023) की घोषणा हुई। जहां अलग-अलग फील्ड में अनोखा काम करने वाली हस्तियों को पद्मश्री से नवाजा गया है। यह सम्मान पाने वाले में कई ऐसे गुमनाम नाम हैं जो इस शोर-शराबे वाली दुनिया से अलग अपने काम में मग्न हैं। एक ऐसा ही नाम मध्य प्रदेश के उमरिया जिले की 83 साल की जोधइया बाई है। जिन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है।

पढ़ी-लिखी नहीं...लेकिन फ्रांस, अमेरिका और इंग्लैड के लोग भी जानते हैं नाम

दरअसल, 83 साल की जोधइया बाई उमरिया के लोढ़ा गांव की रहने वाली हैं। वह पढ़ी-लिखी नहीं हैं...लेकिन अपनी अनोखी चित्रकला के लिए पूरे देशभर में जानी जाती हैं। उन्होंने 10 साल में बैगा जनजाति की प्राचीन बैगिन चित्रकारी को दुनिया में प्रसिद्ध कर दिया है। बता दें कि उनके चित्रों की प्रदर्शनी फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैड में लग चुकी है। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय मातृ शक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है।

कभी नहीं सोचा था उनकी संस्कृति विदेश तक जाएगी

बता दें कि जोधइया बाई बैगा बड़ादेव, बघासुर के चित्र आधुनिक रंगों में उकेरती हैं। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि आदिवासी संस्कृति के बीच अपने कठिन समय को गुजारते हुए उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी अपनी संस्कृति एक दिन उन्हें पहचान दिलाएगी। उनके द्वारा बनाई गई बैगा जन जाति की परंपरागत पेटिंग्स की प्रदर्शनी देश ही नहीं विदेश में लग चुकी है। वह शांति निकेतन विश्वभारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल आफ ड्रामा, आदिरंग कार्यक्रम में शामिल हुईं और सम्मानित हुईं।

सीएम शिवराज खुद उसने मिलने गए थे गांव

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय भोपाल में जोधइया बाई के नाम से एक स्थाई दीवार बनी हुई है जिस पर इनके बनाए हुए चित्र हैं। मानस संग्रहालय में भी हो चुकी हैं शामिल। प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान जोधइया बाई को पहले भी कई बार सम्मानित कर चुके हैं। इतना ही नहीं एक कार्यक्रम के दौरान खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान उनसे मिलने के लिए उनके गांव लोढ़ा तक पहुंचे थे।

पति की मौत के बाद बच्चों को पालने के लिए मजदूरी की

जोधइया अम्मा ने करीब 12 साल पहले जिले के लोढ़ा में स्थित जनगण तस्वीर खाना से आदिवासी कला की शुरुआत की। जोधइया बाई ने यह कला अपने गुरु आशीष स्वामी से सीखी। उनके गुरू आशीष स्वामी शांति निकेतन से जुड़े थे। जोधइया अम्मा की शादी करीब 14 साल की उम्र में ही हो गई थी। विवाह के कुछ सालों बाद ही उनके पति की मौत हो गई। जिस वक्त पति का निधन हुआ था वह गर्भवती थीं। परिवार को पालने के लिए उन्होंने मजदूरी तक की। जंगल में जाकर पत्थर तोड़े और बच्चों को पाला। फिर गुरू के कहने पर उन्होंने 2008 में चित्रकारी शुरू की। इस दौरान वह पेंटिंग की बारीकियां सिखती गईं।

 

 

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