खत्म हुआ मनमुटाव? महाराष्ट्र में फिर साथ आए अजीत और शरद पवार, जानिए क्या बदलेगा

Published : Dec 29, 2025, 12:06 PM IST
ajit pawar sharad pawar

सार

Ajit Pawar Sharad Pawar NCP: दो साल बाद अजित पवार और शरद पवार के NCP धड़े पिंपरी-चिंचवड नगर निगम चुनावों के लिए फिर से साथ आए हैं। 'Clock' और 'Tutari' चिन्ह वाले दोनों दल अब एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरेंगे। 

NCP Alliance in Maharashtra: दो साल से अधिक समय बाद राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (NCP) के दो हिस्सों अजित पवार और शरद पवार ने पिंपरी-चिंचवड (Pimpri-Chinchwad) नगर निगम चुनावों के लिए हाथ मिलाया है। महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री अजित पवार ने रविवार को एक चुनावी रैली में कहा, इस नगर निगम चुनाव के लिए 'घड़ी' और 'तुरहा' एक हो गए हैं। परिवार फिर एक साथ आया है। बता दें कि अजित पवार की पार्टी का चुनाव चिन्ह घड़ी और शरद पवार की पार्टी का चुनाव चिन्ह तुरहा है।

NCP में विभाजन कैसे हुआ

NCP की स्थापना शरद पवार ने 1999 में की थी। दो दशक तक यह महाराष्ट्र की राजनीति में अहम खिलाड़ी रही। अजित पवार, शरद पवार के भतीजे, पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे और कई बार उपमुख्यमंत्री भी रहे। विभाजन की वजह 2023 में अजित पवार ने शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी से अलग होकर BJP और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ गठबंधन किया। अजित ने कहा कि शरद पवार के उम्र के बावजूद पार्टी की बागडोर संभालने पर सवाल उठाए। वह शासक गठबंधन के साथ जाने पर जोर देते थे, जबकि शरद पवार का दल विपक्ष में बने रहने पर कायम था।

दो हिस्सों में बंटी पार्टी

अजित ने नांदेड शिविर में कहा, 'मैंने यह कदम सिर्फ सत्ता या पद के लिए नहीं उठाया, बल्कि महाराष्ट्र में स्थिरता और प्रगति सुनिश्चित करने के लिए लिया।' जवाब में शरद पवार ने कहा,'मैं अभी भी प्रभावी हूं, चाहे मैं 82 का हूं या 92 का।' विभाजन के बाद NCP दो हिस्सों में बंट गई अजित पवार का धड़ा महाराष्ट्र में NDA के साथ गठबंधन कर लिया औऱ उसे घड़ी चुनाव चिन्ह के तौर पर मिला। वहीं, शरद पवार की NCP-SP स्वतंत्र रूप से जारी तुरहा को चिन्ह के तौर पर अपनाया।

2024 लोकसभा चुनाव में नुकसान

अजित पवार ने बाद में माना कि परिवार से दूर होना उनकी गलती थी। अब फिर से चाचा-भतीजे की जोड़ी साथ आ गई है। अब दोनों धड़े पहली बार चुनावी तालमेल कर रहे हैं। यह शहर में NCP की स्थिति को मजबूत कर सकता है। दोनों के तालमेल से वोटिंग पैटर्न में बदलाव की संभावना है। इसे दोनों पार्टियों के बीच पिछले दो सालों के तनाव का राजनीतिक समापन भी माना जा रहा है।

 

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