टायर फटना कोई 'ईश्वर की लीला' नहीं है, इसलिए क्लेम नहीं रोक सकतीं बीमा कंपनियां, जागो ग्राहक जागो

Published : Mar 13, 2023, 06:52 AM ISTUpdated : Mar 13, 2023, 06:55 AM IST
Tyre burst not Act of God

सार

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एश्योरेंस कंपनी को एक कार दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को 1.25 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। बीमा कंपनी ने 'एक्ट ऑफ गॉड-Act of God' क्लोज का हवाला देते हुए क्लेम देने से इनकार कर दिया था।

मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को एक कार दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को 1.25 करोड़ रुपए का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। बीमा कंपनी ने 'एक्ट ऑफ गॉड-Act of God' क्लोज का हवाला देते हुए क्लेम देने से इनकार कर दिया था। पढ़िए आपके काम की खबर...

सरकारी स्वामित्व वाली बीमा कंपनी ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल के एक फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। ट्रिब्यूनल ने कंपनी को पीड़ित के परिवार को मुआवजे के रूप में 1.25 करोड़ रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

25 अक्टूबर, 2010 को पुणे से मुंबई जाते समय एक कार दुर्घटना में मकरंद पटवर्धन की मौत हो गई थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मकरंद तेज गति से गाड़ी चला रहे थे। उनकी कार का टायर फट गया, जिससे स्पिन कंट्रोल से बाहर हो गई और खाई में जा गिरी।

कंपनी ने तर्क दिया कि मुआवजे की राशि अत्यधिक थी, अदालत को यह समझाने की कोशिश की गई कि टायर फटना एक 'ईश्वर का कार्य-Act of God' था और यह मानवीय लापरवाही के कारण नहीं हुआ था। 'एक्ट ऑफ गॉड' क्लॉज के तहत आने वाली घटनाएं आमतौर पर बीमा कंपनियों द्वारा कवर नहीं की जाती हैं। जैसे-भूकंप आदि कोई प्राकृतिक आपदा।

'एक्ट ऑफ गॉड' के अर्थ की व्याख्या करते हुए सिंगल जज की बेंच ने कहा कि यह एक गंभीर अप्रत्याशित प्राकृतिक घटना को इंगित करता है जिसके लिए कोई भी इंसान जिम्मेदार नहीं है। टायर के फटने को ईश्वर का कार्य नहीं कहा जा सकता है। यह मानवीय लापरवाही का कार्य है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि टायर फटने के कारण तेज गति, टायर का दबाव और टायर की उम्र से लेकर टेम्परेचर तक हो सकते हैं। ड्राइवर को यात्रा से पहले टायर की स्थिति की जांच करनी होगी। टायर फटने की घटना को प्राकृतिक कृत्य नहीं कहा जा सकता। यह मानवीय लापरवाही के कारण है।

मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में माना कि पटवर्धन अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला था और उसने बीमा कंपनी को मुआवजे का भुगतान करने के लिए कहा।

अदालत का फैसला सड़कों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने और दुर्घटना पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए वाहन मालिकों और बीमाकर्ताओं के बीच अधिक जागरूकता और जिम्मेदारी की आवश्यकता की याद दिलाता है।

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