पंजाब के पूर्व DIG और रिटायर्ड DSP को 31 साल बाद सुनाई सजा, जानिये क्या था मामला

फर्जी मुठभेड़ मामले में पंजाब के पूर्व डीआईजी दिलबाग सिंह और रिटायर्ड डीएसपी गुरबचन सिंह को 31 साल बाद सजा सुनाई गई है।

subodh kumar | Published : Jun 7, 2024 11:46 AM IST / Updated: Jun 07 2024, 05:44 PM IST

मोहाली. 1993 में हुए एक फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को पंजाब के पूर्व डीआईजी दिलबाग सिंह को 7 साल की जेल और रिटायर्ड डीएसपी गुरबचन सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई है। दरअसल ये मामला अमृतसर के तरनतारन जंडाला रोड निवासी फल विक्रेात गुलशन कुमार की हत्या से जुड़ा है। जिसमें आरोपियों के खिलाफ सीबीआई ने 28 फरवरी 1997 को आईपीसी की धारा के तहत केस दर्ज किया था।

1993 के मामले में 31 साल बाद सजा

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आपको बतादें कि सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश आरके गुप्ता ने फर्जी मुठभेड़ मामले में गुरुवार को दो पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी ठहराया था। इस मामले में पंजाब के पूर्व उप महानिरीक्षक दिलबाग सिंह को सब्जी विक्रेता गुलशन कुमार के अपहरण और हत्या के मामले में सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई, वहीं पूर्व पुलिस उपाधीक्षक गुरबचन सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। ये मामला 1993 का है। जिसमें करीब 31 साल बाद सजा सुनाई गई है।

अपहरण कर फर्जी मुठभेड़ में कर दी हत्या

इस मामले में सब्जी विक्रेता के पिता चमन लाल ने बताया था कि 22 जून 1993 को तरनतारन के डीएसपी ने उनके बेटे गुलशन कुमार को जबरन उठवा लिया था। इसके बाद 22 जुलाई 1993 को फर्जी मुठभेड़ में उसकी हत्या कर दी गई। चिमनलाल ने बताया कि पुलिस ने उन्हें बगैर सूचना दिये उनके बेटे का अंतिम संस्कार भी कर दिया था। इस मामले में तभी से केस चल रहा था। अब जाकर इस मामले में कोर्ट ने सजा सुनाई है।

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तीन आरोपियों की हो गई मौत, दो को मिली सजा

इस मामले में जांच के बाद सीबीआई ने 7 मई 1999 को तत्कालीन डीएसपी दिलबाग सिंह, तत्कालीन इंस्पेक्टर गुरबचन सिंह, तत्कालीन एएसआई अर्जुन सिंह, तत्कालीन एएसआई देविंदर सिंह और तत्कालीन एसआई बलबीर सिंह के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था। ये मामला लंबे समय तक चला। ऐसे में आरोपी अर्जुन सिंह, देविंदर सिंह और बलबीर सिंह की मौत हो गई थी। इसके बाद 7 फरवरी 2000 को आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। अब इस मामले में 32 गवाहों और चश्मदीद के बयानों से साफ हुआ कि पुलिस अफसरों द्वारा बताई गई कहानी झूठी थी। तब जाकर इस मामले में अब रिटायर्ड पुलिस अफसरों को सजा सुनाई गई है।

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