fathers day 2023: कहतें हैं कि पिता दुपहरी में तपता है तो बच्चों को छांव देता है। राजस्थान के भरतपुर से एक ऐसे ही पिता की कहानी सामने आई है। जिसने 25 साल तक हाथ ठेले पर सामान बेंचकर परिवार पाला और बच्चों को पढ़ाया। आज उसके बच्चे अफसर और डॉक्टर हैं।
भरतपुर. फादर्स डे के मौके पर आज आप राजस्थान की कई कहानियां सुन रहे होंगे जिनमें कहीं पिता का त्याग तो कहीं पिता की बहादुरी के किस्से आपने सुने लेकिन क्या आप जानते हैं राजस्थान में एक शख्स ऐसा है जो खुद तो गली-गली सामान बेचता था लेकिन इन हालातों में भी उसकी बेटी ने अपनी पढ़ाई पूरी की और यूपीएससी की एग्जाम को पास कर दिया। बेटी तो बड़ी अधिकारी बन गई लेकिन पिता को अनपढ़ होने के चलते यह भी नहीं पता की बेटी ने कौन सी तो परीक्षा दी और कहां उसका चयन हुआ है।
भरतपुर के अटल बंद क्षेत्र में ठेले पर सामान बेंचते थे पिता
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के भरतपुर के अटल बंद क्षेत्र में रहने वाले गोविंद कुमार की। जो बीते 25 साल से ठेले पर खाने का सामान बेचते थे। सुबह से लेकर शाम तक वह कस्बे की कई गलियों में घूमते। जिससे कि परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का गुजारा हो पाता। उनकी बेटी दीपेश कुमारी ने यूपीएससी के एग्जाम को न केवल क्रेक किया बल्कि पूरे देश में 93 वी रैंक हासिल की है। परिवार के पास रहने को केवल एक कमरा था। परिवार में आधा दर्जन सदस्य होने के बाद जहां परिवार के लोगों के पास बैठने के लिए पूरी जगह तक नहीं थी उन हालातों में इस पिता ने अपनी मेहनत के बलबूते अपनी बेटी को यूपीएससी का एग्जाम क्रेक करवा दिया।
जोधपुर से इंजीनियरिंग और मुंबई एमटेक...फिर शुरू की यूपीएससी की तैयारी
बेटी दीपेश को अपनी सफलता का बिल्कुल भी घमंड नहीं है वह कहती है कि उन्होंने परिवार के हालात भी देखे हुए हैं जब परिवार के पास कई बार दो वक्त की रोटी की व्यवस्था भी नहीं हो पाती थी। आपको बता दे कि गोविंद की बेटी दीपेश ने सरकारी स्कूल में रहकर ही अपनी पढ़ाई पूरी की के बाद जोधपुर से इंजीनियरिंग की और फिर आईआईटी मुंबई से एमटेक कर यूपीएससी की तैयारी करना शुरू कर दिया।
एक सफलता के बाद दो भाई-बहन बन गए डॉक्टर
दीपेश ने पढ़ाई के लिए दिन-रात एक कर दिए। जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें पहले ही प्रयास में सफलता मिल गई। इतना ही नहीं दीपेश की एक बहन ममतेश दिल्ली के सरकारी हॉस्पिटल में डॉक्टर है। जबकि भाई सुमित महाराष्ट्र में वर्तमान में एमबीबीएस कर रहा है और उससे छोटा भाई असम में एमबीबीएस कर रहा है जबकि एक भाई वर्तमान में 12वीं कक्षा में पढ़ रहा है। दीपेश बताती है कि परिवार में एक को सफलता मिलने के बाद अब सभी दिन रात पढ़ाई करने में लगे हुए हैं। धीरे-धीरे अब परिवार के हालात भी बदलने लगे हैं। इतना ही नहीं हमें देखकर गांव के दूसरे लोग भी मोटिवेट हुए हैं और गरीबी के हालात में भी उन्होंने पढ़ना शुरू कर दिया है।