
भीलवाड़. राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडलगढ़ उपखंड में स्थित सिंगोली ग्राम पंचायत का कालीखोल गांव अपने प्राकृतिक सौंदर्य और विशिष्ट जीवनशैली के लिए जाना जाता है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच बसे इस गांव में शीत ऋतु के दौरान सूर्य की पहली किरण सुबह 9 बजे के बाद पड़ती है, और शाम 4 बजे सूर्यास्त हो जाता है। गर्मियों में भी यहां दिन के केवल 9 घंटे ही ग्रामीणों के लिए उपलब्ध होते हैं, जिससे उनकी दिनचर्या सीमित हो जाती है।
पहले यह गांव "कालीखोह" के नाम से प्रसिद्ध था, लेकिन समय के साथ इसका नाम "कालीखोल" हो गया। सिंगोली के हरि हर धाम चारभुजा मंदिर से दक्षिण की ओर जाने वाली सड़क कालीखोल की ओर जाती है। इस मार्ग पर दोनों ओर ऊंचे पहाड़ और बीच-बीच में बस्तियां हैं। यहां की प्राकृतिक सुंदरता किसी को भी आकर्षित कर सकती है।
गांव की भौगोलिक स्थिति के कारण यहां मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता। बीएसएनएल ने एक साल पहले टावर लगाया, लेकिन सेवाएं अभी तक चालू नहीं हो सकी हैं। इसके चलते ग्रामीणों को पेड़ या पहाड़ियों पर चढ़कर फोन पर बात करनी पड़ती है। इसके अलावा, गांव में पेयजल का संकट भी गहराया हुआ है।
कालीखोल के ग्रामीणों का जीवन पहाड़ों के बीच सीमित संसाधनों के कारण कठिन है। देर से सूर्य उगने और जल्दी अस्त होने के कारण दिनचर्या प्रभावित होती है। सुबह देर से काम शुरू होता है और शाम तक सभी लोग घर लौट आते हैं। मवेशियों को चराने और खेती-बाड़ी के लिए समय कम मिल पाता है।
यातायात के साधनों की कमी और सीमित कामकाजी समय के कारण गांव आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। यहां के निवासी बेहतर संचार सुविधाओं और बुनियादी ढांचे की मांग कर रहे हैं। कालीखोल, भले ही जीवनयापन के लिए संघर्षपूर्ण हो, लेकिन इसकी प्राकृतिक छटा इसे एक खास पहचान देती है। यह गांव, अपनी विशिष्टता के साथ, ग्रामीण जीवन का अनूठा उदाहरण है।
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