Rezang La Battle: मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 120 बहादुर भारतीय जवानों ने 1962 में चीन के 1300 सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। उनकी वीरता की कहानी पर आधारित फिल्म '120 बहादुर' फरहान अख्तर की मुख्य भूमिका में आ रही है, जो भारत के गर्व की मिसाल है।
राजस्थान की वीरभूमि जोधपुर के पास बसे बनासर गांव में 1 दिसंबर 1924 को एक ऐसा सपूत जन्मा, जिसकी बहादुरी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई। मेजर शैतान सिंह भाटी सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि अटूट साहस, अनुशासन और बलिदान के पर्याय बन गए। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी भी प्रथम विश्व युद्ध के योद्धा रहे और ब्रिटिश सरकार से सम्मानित हुए। यही पारिवारिक विरासत बालक शैतान सिंह के मन में सेना में जाने का बीज बो गई।
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शैतान सिंह की पहली पोस्टिंग कुमाऊं रेजिमेंट में हुई
जोधपुर के राजपूत हाई स्कूल और जसवंत कॉलेज से शिक्षा पूरी करने के बाद, वे देश की आज़ादी के समय जोधपुर लांसर्स से जुड़े। रियासत के भारत में विलय के बाद 1949 में उनकी पोस्टिंग कुमाऊं रेजिमेंट में हुई। ईमानदारी, सादगी और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें साथियों के बीच विशेष स्थान दिलाया। उन्होंने नागा हिल्स और 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में भी अद्वितीय योगदान दिया।
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1962 का रेज़ांग ला मोर्चा
भारत-चीन युद्ध के दौरान, लद्दाख के चुशूल सेक्टर में स्थित रेज़ांग ला पोस्ट की सुरक्षा 13 कुमाऊं की ‘सी कंपनी’ को सौंपी गई थी, जिसकी कमान मेजर शैतान सिंह के हाथों में थी। यह इलाका समुद्र तल से करीब 17,000 फीट की ऊंचाई पर था, जहां सांस लेना भी कठिन होता है। 18 नवंबर 1962 की तड़के, जब तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे था, चीनी सेना ने हमला किया।
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"मुझे यहीं छोड़ दो, बाकी अपनी जान बचाओ और लड़ते रहो"
सीमित गोला-बारूद और संसाधनों के बावजूद भारतीय जवान डटे रहे। मेजर शैतान सिंह ने तीनों प्लाटूनों को रणनीतिक रूप से तैनात किया और स्वयं मोर्चे से नेतृत्व किया। लगातार कई लहरों में हुए हमलों को उनके जवानों ने रोका, लेकिन लड़ाई के दौरान मेजर को गंभीर चोटें आईं। साथी उन्हें पीछे ले जाना चाहते थे, पर उन्होंने आदेश दिया—"मुझे यहीं छोड़ दो, बाकी अपनी जान बचाओ और लड़ते रहो।"
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देश की खातिर आखिरी सांस तक लड़ी लड़ाई
रेज़ांग ला का इलाका ‘क्रेस्टेड’ होने के कारण तोपखाने की मदद संभव नहीं थी, फिर भी कंपनी के 124 में से 114 जवान शहीद हुए। दुश्मन को कई गुना अधिक नुकसान हुआ और उनका चुशूल एयरफील्ड कब्जाने का सपना टूट गया। बर्फ पिघलने पर तीन महीने बाद जब एक चरवाहे ने वहां के दृश्य देखे, तो पाया कि सैनिक अपनी अंतिम पोज़िशन में ही जमे हुए थे, मानो मौत भी उनकी वीरता के आगे ठिठक गई हो।
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मेजर शैतान सिंह को मिला परमवीर चक्र
मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया। उनकी स्मृति में राजस्थान से लेकर लद्दाख तक स्मारक बने, और उनका नाम भारतीय सेना के स्वर्णिम इतिहास में अमर हो गया। आज भी रेज़ांग ला की ठंडी हवाएं उनके साहस की कहानी सुनाती हैं—एक ऐसे नायक की, जिसने मातृभूमि के लिए अपनी आखिरी सांस तक संघर्ष किया। अब उनकी जीवनी पर '120 बहादुर' पिक्चर बन रही है। जिसमें उनका रोल फरहान अख्तर निभा रहे हैं।