
Chandrashekhar Azad Bicycle: देश की आज़ादी के आंदोलन में अनगिनत क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्यौछावर किए, लेकिन कुछ विरासतें ऐसी हैं जो समय के साथ भुला दी गईं। राजस्थान की राजधानी जयपुर में अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम (Albert Hall Museum Jaipur) के स्टोर रूम में एक ऐसी ही अनमोल धरोहर पिछले तीन साल से बंद पड़ी है-अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद (Chandrashekhar Azad escape story) की विदेशी निर्मित साइकिल और शीशम की लाठी।
साल 1930 में काकोरी कांड के बाद जब ब्रिटिश हुकूमत उनके पीछे पड़ गई थी, तो चंद्रशेखर आज़ाद ने कई जगह शरण ली। जयपुर में उन्होंने राजवैद्य पंडित मुक्ति नारायण शुक्ल के बाबा हरिशचंद्र मार्ग स्थित हवेली में रिश्तेदार के रूप में दो महीने तक ठहराव किया। यहां वे भेष बदलकर साइकिल से शहर और आसपास के इलाकों में स्वतंत्रता सेनानियों से मिलने जाया करते थे।
एक दिन जब ब्रिटिश पुलिस को उनकी मौजूदगी का पता चला, तो आज़ाद ने तुरंत वहां से निकलने का निर्णय लिया। अवधेश नारायण शुक्ल के साथ वे उसी साइकिल पर सवार होकर घाटगेट, कानोता होते हुए बस्सी रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहीं से इलाहाबाद की ट्रेन पकड़ी और अपनी साइकिल व लाठी शुक्ल परिवार को सौंप दी। कुछ समय बाद इलाहाबाद (प्रयागराज) में उन्होंने अंग्रेजों से मुठभेड़ में अंतिम गोली खुद पर चलाकर शहादत प्राप्त की।
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दशकों तक यह साइकिल और लाठी शुक्ल परिवार ने संभालकर रखी। 14 मार्च 2022 को, अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए, अवधेश नारायण शुक्ल की पुत्री ने तत्कालीन मंत्री बी. डी. कल्ला की मौजूदगी में यह धरोहर अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम को सौंप दी, ताकि इसे आम जनता के लिए प्रदर्शित किया जा सके।
तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन यह विरासत आज भी स्टोर रूम में बंद है। म्यूज़ियम प्रशासन का कहना है कि अल्बर्ट हॉल के जीर्णोद्धार के बाद इन्हें प्रदर्शनी में रखा जाएगा। इतिहासकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह धरोहर तुरंत लोगों के सामने आनी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी को आज़ादी के आंदोलन की प्रेरणादायक कहानियों से जोड़ा जा सके।
यह साइकिल और लाठी सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी की निजी वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के जीवित गवाह हैं। इन्हें जनता से दूर रखना न केवल इतिहास के साथ अन्याय है, बल्कि उस बलिदान की उपेक्षा भी, जिसने हमें स्वतंत्र भारत का सूरज देखने का अवसर दिया।
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