
भीलवाड़ा. कल यानि 13 मार्च को पूरे भारत देश में शहर से लेकर हर गांव में होलिका दहन (holika dahan 2025) की जाएगी। इस मौके पर अलग-अलग परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। लेकिन सभी जगह एक बात कॉमन रहती है कि होलिका दहन करना है। लेकिन राजस्थान में एक जगह ऐसी भी है जहां पर होलिका दहन नहीं किया जाता है। पिछले करीब 70 साल से इस दिन गांव में सूनापन रहता है। इसके पीछे की वजह एक हादसा है, जिसे लोग आज भी नहीं भूले हैं, वो मंजर याद करके डर जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित हरणी गांव (harni village) की। जो भीलवाड़ा से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां आज से करीब 70 साल पहले होलिका दहन के दौरान भयंकर आग लगी थी। जिससे उस समय काफी नुकसान हुआ था। गांव के लोग बर्बाद हो गए। ऐसे में वहां पंचायत बुलाई गई और होलिका दहन नहीं करने का फैसला लिया गया। ऐसे में अब होली के दिन यहां पर केवल होलिका और प्रहलाद की पूजा अर्चना की जाती है।
ग्रामीण बताते हैं कि करीब 70 साल पहले होलिका दहन के दौरान अचानक एक चिंगारी उठी। जिसने देखते ही देखते पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया। इसके बाद सर्वसम्मति से होलिका दहन नहीं करने का निर्णय लिया गया। यह इंडिया का इकलौता ऐसा गांव है जहां सोने से बने प्रहलाद और चांदी से बनी होलिका की पूजा अर्चना की जाती है लेकिन होलिका दहन नहीं किया जाता।
गांव के लोग बताते हैं कि होलिका दहन नहीं करने का निर्णय तो आज से करीब 70 साल पहले ले लिया गया था। साथ ही संकल्प लिया गया कि होलिका दहन के लिए पेड़ नहीं काटेंगे। इसके बाद ग्रामीणों ने चंदा एकत्रित करके सोने के प्रहलाद और चांदी की होलिका बनवाकर उनकी पूजा करना शुरू कर दिया।
होली के दिन शाम को गांव के सभी लोग गांव के चौक में एकत्रित होते हैं और फिर वहां प्रहलाद और होलिका की पूजा करते हैं। इसके साथ ही होलिका और प्रहलाद की मूर्ति को थाली में सजाकर पूरे गांव में उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है और वापस उन्हें मंदिर में रख दिया जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि भगवान कि उन पर इस तरह की मनोकामना है कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का भी कोई केस उनके गांव में नहीं आया।
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