तो क्या अब मां का दूध भी सुरक्षित नहीं, डॉक्टर की यह रिपोर्ट दिमाग हिला देगी

Published : Feb 10, 2025, 06:03 PM ISTUpdated : Feb 10, 2025, 06:19 PM IST
Baby Feeding Problems

सार

Jaipur News Doctor big revelation of mother milk for newborn : राजऋषि कॉलेज, अलवर की एसोसिएट प्रोफेसर और विष वैज्ञानिक डॉ. ममता शर्मा ने राजस्थान की कई अस्पतालों में मां के दूध के सैंपल लिया हैं। जिन्होंने रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।

जयपुर,  Jaipur News आधुनिक खेती में कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को खत्म कर रहा है, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। हाल ही में हुए एक शोध में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि प्रसूताओं और मवेशियों के दूध में 23 प्रकार के कीटनाशकों के अवशेष मिले हैं। जयपुर के जनाना अस्पताल (Jaipur Lady Hospital) और महिला चिकित्सालय से लिए गए 101 सैंपलों में एक भी ऐसा नहीं था, जिसमें कीटनाशकों के तत्व न हों।

पंजाब से आ रहे जहर से मां का दूध बन रहा खतरा

राजऋषि कॉलेज, अलवर की एसोसिएट प्रोफेसर और विष वैज्ञानिक डॉ. ममता शर्मा के अनुसार, खेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध छिड़काव मां के दूध तक को विषैला बना रहा है। विशेष रूप से हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर में स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि पंजाब से बहकर आने वाला रसायनयुक्त पानी यहां की सिंचाई प्रणाली में मिल जाता है। इससे मिट्टी और जल दोनों प्रदूषित हो रहे हैं, जिसका प्रभाव मानव शरीर तक पहुंच रहा है।

रिपोर्ट में खुलासा, डिब्बाबंद दूध भी क्यों नहीं सुरक्षित

शोध में पाया गया कि नव प्रसूताओं के दूध में ऑर्गेनोक्लोरीन कीटनाशक जैसे डीडीटी, एंड्रिन, एंडोसल्फान, क्लोरडेन, हेप्टाक्लोर, डाइएलड्रिन और एल्ड्रिन शामिल हैं। यही कीटनाशक मवेशियों के दूध में भी पाए गए हैं, जिससे डिब्बाबंद दूध भी सुरक्षित नहीं रह गया है।

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70% सैंपल में कीटनाशक पाए गए

  1. प्रजनन संबंधी परेशानी: 70% सैंपलों में दो या अधिक प्रकार के कीटनाशक पाए गए, जो न केवल प्रजनन प्रणाली को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि कैंसर जैसी बीमारियों को भी जन्म दे सकते हैं।

2. डायबिटीज और कुपोषण: शोध में पाया गया कि गांवों में कम उम्र में डायबिटीज के मामले बढ़ रहे हैं, और कीटनाशकों के कारण बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।

3. तंत्रिका तंत्र पर असर: ये रसायन शरीर की नर्वस सिस्टम पर असर डालते हैं, जिससे याददाश्त कमजोर होने और मानसिक विकास प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है।

इन समाधान की जरूरत

  • जैविक कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाया जाए।
  • कीटनाशकों का उपयोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार किया जाए।
  •  बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च को बढ़ावा देकर ऐसी फसलें विकसित की जाएं, जो कीटों के प्रति प्रतिरोधी हों।
  • ऐसे कीटनाशक विकसित किए जाएं जो केवल कीटों को नुकसान पहुंचाएं, न कि मानव शरीर को।
  • यह शोध स्पष्ट करता है कि कीटनाशकों का अनियंत्रित उपयोग पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहा है। समय रहते यदि जागरूकता नहीं बढ़ाई गई, तो इसका गंभीर दुष्प्रभाव आने वाली पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा।

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