
Jaipur Town Hall dispute: जहां कभी राजस्थान की राजनीति की धड़कनें सुनाई देती थीं, वहीं अब एक नई कानूनी जंग की गूंज उठ रही है। जयपुर का ऐतिहासिक टाउन हॉल, जो एक समय विधानसभा का केंद्र था, अब संस्कृति और स्वामित्व के टकराव में फंसा हुआ है। इस बार मामला पहुंचा है भारत की सबसे बड़ी अदालत तक और सवाल सिर्फ इमारत का नहीं, इतिहास और अधिकार का है।
2022 में राज्य सरकार ने जयपुर के टाउन हॉल को “वर्ल्ड क्लास हेरिटेज म्यूजियम” में बदलने का फैसला किया था। तभी से यह मुद्दा तूल पकड़ने लगा। शाही परिवार का कहना है कि यह भवन 1949 में भारत सरकार और जयपुर राजघराने के बीच हुए एक विशेष करार के तहत केवल “आधिकारिक उपयोग” के लिए दिया गया था।
राजमाता पद्मिनी देवी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस फैसले को चुनौती दी है। मामले की सुनवाई कर रही पीठ जिसमें न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल हैं ने कहा कि यह "गंभीर संवैधानिक मुद्दा" है और इस पर विस्तार से विचार किया जाएगा। हालांकि कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा दी गई राहत पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया।
राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह विवाद संविधान के अनुच्छेद 363 से जुड़ा है, जिसमें पूर्व रियासतों और भारत सरकार के बीच हुए करारों की न्यायिक व्याख्या सीमित होती है। वहीं याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से वकील हरीश साल्वे ने दलील दी कि यह मामला नागरिक अधिकारों और निजी संपत्ति से जुड़ा है, इसलिए इसे अनुच्छेद 14, 21 और 300A के तहत देखा जाना चाहिए।
यह मामला अब महज एक इमारत का नहीं रहा, यह सवाल बन चुका है कि भारत में पूर्व रियासतों और शाही परिवारों के अधिकार आज के लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढांचे में कितनी जगह रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई इस ऐतिहासिक बहस को दिशा देगी।
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