
जोधपुर. लिव-इन रिलेशनशिप (live in relationship) पर हाईकोर्ट का सख्त फैसला (Court decision) राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) की जोधपुर पीठ ने हाल ही में एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी शादीशुदा बहन को लेकर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी बहन को उसके जीजा ने अवैध रूप से बंधक बना रखा है। हालांकि, जब अदालत ने मामले की गहराई से जांच की, तो सामने आया कि याचिकाकर्ता खुद अपनी बहन के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में होने का दावा कर रहा था।
लिव-इन रिलेशनशिप पर कानूनी दृष्टिकोण भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता प्राप्त है, लेकिन यह केवल वयस्क, अविवाहित और सहमति से रहने वाले पुरुष और महिला के लिए लागू होता है। यदि कोई संबंध विवाह संस्था को ठेस पहुंचाता है या सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है, तो इसे कानून का संरक्षण नहीं मिल सकता। इस मामले में अदालत ने भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 23 का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी बहन के बीच कथित संबंध 'शुरू से ही अमान्य' हैं।
इस फैसले के जरिए हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का दुरुपयोग करके अनैतिक कृत्यों को वैध नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला अपने विवाह से असंतुष्ट है, तो उसे कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए, न कि गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेना चाहिए।
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