राजस्थान के सीकर शहर स्थित देवपुरा बाला जी मंदिर में अनोखा विश्व रिकॉर्ड बनेगा। यहां भगवान का भोग लगाने के लिए 2700 किलो रोटी का भोग लगाया जाएगा। इसे बनाने के लिए इस तरह का काम कर चुके जोधपुर के हलवाईयों को बुलाया गया है।
सीकर (sikar News). आपने अपने जीवन में कितनी बड़ी रोटी देखी है। ज्यादा से ज्यादा शादियों में काम आने वाले तवे पर बनी रोटी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कोई ऐसी रोटी बन रही हो जिसे बेलने के लिए रोलर बुलाया जाए। इतना ही नहीं उसकी सिकाई भी 18 घंटे तक की जाए। ऐसा ही कुछ होने जा रहा है राजस्थान के सीकर शहर में। जहां भगवान हनुमान को 2700 किलो की रोटी का भोग लगाया जाएगा। जिसकी सिकाई 18 घंटे तक की जाएगी। इसके बाद इसका चूरमा बनाकर भगवान हनुमान को उसका भोग लगाया जाएगा।
सीकर में भगवान हनुमान को 2700 किलो रोटी का लगेगा भोग
यह आयोजन होने जा रहा है सीकर शहर के देवपुरा बालाजी मंदिर में। यहां के महंत ओम शर्मा ने बताया कि हर बार बाबा को अच्छे से अच्छा भोग लगाया जाता है। इसी के तहत निर्णय किया कि क्यों ना इस बार कोई वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जाए। फिर क्या था साथियों के साथ इस बारे में चर्चा की। जिन्होंने इस तरह की रोटी बनाने का विचार दिया। हालांकि राजस्थान में पहले इस तरह की रोटी बन चुकी थी। ऐसे में उन्हीं हलवाईयों को जोधपुर की तरफ से बुलाया गया। इस रोटी को बनाने के लिए बकायदा मंदिर के बाहर एक विशाल भट्टी बनाई गई है। उसके ऊपर रखने के लिए एक लोहे का बड़ा जाल तवे के रूप में बनाया गया है। इसके अलावा रोटी को बेलने के लिए एक बड़ा रोलर भी बनवाया गया है। जो रोटी बेलेगा।
18 घंटे में सिकेगी भगवान के भोग वाली रोटी
करीब 18 घंटे तक रोटी सिकेगी। इस दौरान मंदिर में रामधन का पाठ होता रहेगा। इसके बाद कल सुबह जब रोटी बन जाएगी तो उसमें मेवा और अन्य आइटम मिलाकर उसे एक चूरमे की तरह बना दिया जाएगा और फिर भगवान को उसका भोग लगाया जाएगा इसके बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित कर दिया जाएगा।
पारंपरिक तरीके से होगी भोग की रोटी की सिकाई
आपको बता दें कि इस रोटी के निर्माण के लिए कोई गैस सिलेंडर या अन्य किसी उपकरण को काम में नहीं लिया जा रहा है। बल्कि पारंपरिक और पुराने समय में काम आने वाली गोबर की थेपड़ियों पर ही इसे बनाया जाएगा। इस अनोखी रोटी को बनते देखने के लिए सीकर में लोगों में काफी ज्यादा उत्साह का माहौल है। लोग सुबह से ही मंदिर पहुंचना शुरू हो चुके हैं। करीब दो दर्जन से ज्यादा हलवाई इस रोटी को बना रहे हैं।