
चित्तौड़गढ़, राजस्थान की भूमि पर स्थित चित्तौड़गढ़ किला भारत के सबसे विशाल और ऐतिहासिक किलों में से एक है। यह किला केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं, बल्कि राजपूती वीरताए त्याग और गौरव की अनूठी मिसाल भी है। 7वीं शताब्दी में मौर्य वंश के राजा चित्रांगदा मोरी द्वारा निर्मित यह किला 13 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और समुद्र तल से लगभग 1075 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
चित्तौड़गढ़ किला कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। 1303 में अलाउद्दीन खिलजी 1535 में गुजरात के बहादुर शाह और 1568 में मुगल सम्राट अकबर ने इस पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों के दौरान राजपूतों ने अपार शौर्य दिखाया और राजपूत महिलाओं ने जौहर कर अपने सम्मान की रक्षा की। खासकर रानी पद्मावती का जौहर इतिहास में साहस और बलिदान का प्रतीक बन गया। अंत समय तक खिलजी रानी को पाने की चाहत में डूबा रहा, लेकिन रानी जिंदा जल गई खिलजी उनकी सूरत तक नहीं देख सका। जिस पर वह पूरी तरह से मोहित था।
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इस किले में सात विशाल द्वार हैं, जो इसे अभेद्य बनाते हैं। किले के भीतर कई महत्वपूर्ण स्मारक स्थित हैं, जैसे कि विजय स्तंभ, कीर्ति स्तंभ, मीरा मंदिर, कालिका माता मंदिर, कुंभा महल और रानी पद्मिनी महल। विजय स्तंभ जो 1448 में महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया यह स्तंभ मेवाड़ की वीरता का प्रतीक है। कीर्ति स्तंभ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। रानी पद्मिनी महल की जल संरचना और वास्तुकला इसे अद्वितीय बनाती है। इसे देखने दुनिया भर के लोग यहां आते हैं।
2013 में चित्तौड़गढ़ किले को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया, जिससे इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को वैश्विक पहचान मिली। हर साल हजारों पर्यटक इस किले की भव्यता और वीरता की कहानियों को देखने.सुनने आते हैं। रोशनी और ध्वनि शो के जरिए यहां के गौरवशाली इतिहास को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया जाता है। चित्तौड़गढ़ किला न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के शौर्य, गौरव और प्रेम का प्रतीक है। इसका वैभव और इतिहास हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।
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