
Abbas Ansari sentencing: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक और बड़ा झटका सामने आया है। मऊ सदर से सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी को सीजेएम कोर्ट ने दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई है। यह फैसला 3 मार्च 2022 को विधानसभा चुनाव के दौरान अब्बास द्वारा एक जनसभा में अधिकारियों को “हिसाब बराबर” करने की धमकी देने के मामले में आया है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सवाल उठ रहा है कि क्या अब्बास अंसारी की विधायकी पर भी खतरा मंडरा रहा है?
सीजेएम डॉ. केपी सिंह की अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद 31 मई को फैसला सुनाया। फैसला आते ही मऊ समेत प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई है। फैसले की कॉपी अब विधानसभा स्पीकर को भेजी जाएगी, जो यह तय करेंगे कि अब्बास अंसारी की सदस्यता जारी रहेगी या खत्म कर दी जाएगी।
उधर, अब्बास अंसारी की ओर से हाईकोर्ट में अपील करने की संभावना जताई जा रही है। यदि हाईकोर्ट से उन्हें स्टे मिल जाता है तो अस्थायी राहत मिल सकती है।
यह मामला मऊ की शहर कोतवाली थाने में दर्ज किया गया था। आरोप था कि अब्बास अंसारी, उनके भाई उमर अंसारी और तीन अन्य ने चुनाव प्रचार के दौरान जनसभा में अधिकारियों को धमकाया था। उन्होंने कहा था कि "सरकार बनने के बाद सबका हिसाब होगा" यही बयान अब उनके खिलाफ सबूत बन गया। फैसले के दिन न्यायालय परिसर में सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए गए थे। अंदर प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की गहन तलाशी ली गई। पुलिस और प्रशासन इस मामले की गंभीरता को देखते हुए पहले से सतर्क थे।
अब्बास अंसारी के पिता, दिवंगत मुख्तार अंसारी, कभी मऊ की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में गिने जाते थे। अब्बास ने 2022 में सपा-सुभासपा गठबंधन के टिकट पर बीजेपी उम्मीदवार अशोक सिंह को बड़ी जीत से हराया था। लेकिन अब कानूनी सजा के चलते उनका राजनीतिक करियर मुश्किल मोड़ पर आ सकता है.
भारतीय संविधान के अनुसार, यदि किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो उसकी विधायकी रद्द हो सकती है। हालांकि, अंतिम फैसला स्पीकर को लेना होता है। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि अब्बास अंसारी विधानसभा सदस्य बने रहेंगे या नहीं।
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