जुर्म की दुनिया में साथ कदम रखा, अब मौत के वक्त भी एक हथकड़ी में बंधा रहा अतीक अहमद-अशरफ का हाथ

यूपी के सबसे बड़े माफिया माने जाने वाले अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या (Atiq-Ashraf Murder) कर दी गई। यूपी के प्रयागराज में हुई इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

Atiq Ahmed-Ashraf Murder. जुर्म की दुनिया में ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि दो सगे भाई अंत तक एक-दूसरे का साया बनकर रहें। लेकिन अतीक अहमद और अशरफ की भाईगिरी ने इसे सही साबित कर दिया। यूपी में माफिया डॉन बनने से लेकर मौत की गोली खाने तक अशरफ अपने भाई अतीक अहमद का हमसाया बनकर ही रहा। संयोग ऐसा रहा कि जब दोनों को गोली मारी गई तो वे एक ही हथकड़ी पहने हुए थे।

मीडिया कैमरों की रोशनी में हुई हत्या

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यूपी के प्रयागराज में जहां किसी समय अतीक अहमद और उसके भाई की तूती बोलती थी, उसी प्रयागराज में उन्हें सरेराह गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया गया। करीब 44 साल से लूट, हत्या, जबरन जमीन कब्जा करने से लेकर सांसद बनने तक के सफर में अतीक अहमद का किसी ने साथ दिया तो वह उसका भाई अशरफ ही था। हमेशा साए की तरह अतीक के साथ रहने वाले अशरफ की मौत भी हुई तो भाई के साथ ही हुई। दोनों की मौत में सेकेंड के 100वें हिस्से का भी अंतर नहीं रहा होगा। ऐसा लगा कि मानों एक ही गोली ने दोनों भाईयों का काम तमाम कर दिया हो।

अतीक अहमद का राजनीतक सफर

दरअसल यूपी में जरायम की दुनिया में अतीक का बोलबाला तब शुरू हुआ जब उसने चांद बाबा की हत्या की और उनकी जगह खुद को नया डॉन बना लिया। प्रयागराज में चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक ने दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति की और जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन बैठा। 90 के दशक में यानि 1989 में अतीक पहली बार इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट से विधायक बना। फिर 1991 और 1993 में भी निर्दलीय विधायक बना। 1196 में अतीक अहमद को समाजवादी पार्टी ने टिकट दे दिया और वह फिर विधायक चुना गया। 2002 में अतीक ने अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और पांचवीं बार विधायक बना। इसके बाद 2004 का वक्त आया जब समाजवादी पार्टी के टिकट पर अतीक अहमद पहली बार सांसद बना।

अतीक राजनीति में उतरा तो अशरफ ने संभाली कमान

अतीक अहमद ने जब राजनीति में कदम रखा तो जुर्म की दुनिया की कमान उसने छोटे भाई अशरफ को सौंप दी। अशरफ ने भी बड़ी हिम्मत से अतीक के जुर्म की विरासत को संभाला और हर वह काम करता गया, जो उसके भाई ने ऑर्डर दिया। फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब अशरफ को भी राजनीति में उतरना पड़ा। दरअसल, 2004 में जब सपा के टिकट पर अतीक सांसद बन गया तक उसकी विधायकी की सीट खाली हो गई, उसी सीट से अतीक ने अशरफ को उतार दिया।

यही से मामला उलटा पड़ गया

अतीक की सीट से जब अशरफ ने उपचुनाव लड़ा तब कभी उसी के शागिर्द रहे राजू पाल ने बसपा के टिकट से ताल ठोंक दी। यही नहीं राजू पाल ने अशरफ को उपचुनाव में हरा दिया। लेकिन कुछ ही महीने बाद यानि जनवरी 2005 में राजू पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस रिकार्ड यह भी बताता है कि तब राजू पाल की हत्या में खुद अतीक अहमद शामिल और विदेशी राइफल से पहली गोली उसी ने मारी थी। इसी मामले में मुख्य गवाह उमेश पाल था, जिसकी फरवरी में अतीक के बेटे असद और अन्य शूटरों ने हत्या कर दी। राजू पाल की हत्या के मामले में अतीक और अशरफ दोनों आरोपी थे। अब जहां असद का एनकाउंटर हो गया है, वहीं अतीक और अशरफ की हत्या कर दी गई। पर ताज्जुब की बात है कि अशरफ ने अपने भाई का अंतिम सांस तक साथ दिया और एक ही हथकड़ी में अंतिम सांस ली।

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