
Avadh Ojha Biography: गोंडा की गलियों से निकलकर पटना यूनिवर्सिटी की कक्षाओं तक और फिर दिल्ली-पुणे की कोचिंग क्लासेस तक- यह कहानी है अवध ओझा की। एक ऐसे शिक्षक की, जिन्होंने खुद आईएएस बनने का सपना देखा, मगर असफल रहे। लेकिन वही असफलता उन्हें उस राह पर ले गई जहाँ उन्होंने हजारों युवाओं को सफलता की राह दिखा दी। शिक्षक दिवस पर उनकी यह यात्रा हर किसी के लिए सीख है।
3 जुलाई 1984 को उत्तर प्रदेश के गोंडा में जन्मे अवध ओझा एक साधारण परिवार से आते थे। पिता पोस्टमास्टर थे, मगर बेटे की पढ़ाई के लिए उन्होंने अपनी ज़मीन तक बेच दी। यही त्याग उनके जीवन की नींव बना।
गणित में तेज दिमाग वाले ओझा सर ने गोंडा के फातिमा इंटर कॉलेज से पढ़ाई की और फिर पटना यूनिवर्सिटी से मैथ्स में ग्रेजुएशन व मास्टर्स किया। उनका सपना साफ था- आईएएस अधिकारी बनना। प्रीलिम्स पास कर लिया, लेकिन मेन्स में फेल हो गए। यहीं से कहानी ने करवट ली।
मेन्स की असफलता और आर्थिक तंगी ने उन्हें पढ़ाने के लिए मजबूर किया। इलाहाबाद की कोचिंग क्लास में जब उन्होंने पहली बार इतिहास पढ़ाना शुरू किया, तो किसी ने नहीं सोचा था कि यही काम उन्हें देशभर में पहचान दिलाएगा।
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ओझा सर पढ़ाते समय सिर पर गमछा बांधते हैं। उनकी आवाज़, उनका जुनून और उनका तरीका इतना अलग था कि धीरे-धीरे वह छात्रों के चहेते बन गए। कोरोना महामारी के दौरान जब ऑनलाइन क्लासेज का दौर आया, तो उनके वीडियो यूट्यूब और सोशल मीडिया पर लाखों युवाओं के बीच छा गए।
उनकी क्लास में सिर्फ तथ्य नहीं होते, बल्कि जिंदगी से जुड़ी सीख भी होती है। वह कहते हैं - “परीक्षा में फेल होना हार नहीं, बल्कि नए रास्ते खोजने का मौका है।” यही सोच उन्हें एक साधारण टीचर से प्रेरक गुरु बनाती है।
2007 में मंजरी ओझा से विवाह हुआ। आज उनकी तीन बेटियां हैं। वह अक्सर कहते हैं कि उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी बेटियां और उनके हजारों विद्यार्थी हैं, जिन्होंने उन्हें ‘गुरु’ का दर्जा दिया।
अवध ओझा की कहानी यही सिखाती है कि असफलता कभी भी मंज़िल का अंत नहीं होती। असली शिक्षक वही है, जो अपने अनुभवों से दूसरों के जीवन में रोशनी भर दे।
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