योग, संयम और सादगी से जीए 128 साल, अब नहीं रहे बाबा शिवानंद!

Published : May 04, 2025, 11:14 AM IST
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सार

Yoga Guru Baba Shivanand: 128 वर्षीय पद्मश्री योग गुरु बाबा शिवानंद का बनारस में निधन। सादगी और संयम से भरा जीवन जीने वाले बाबा ने योग को विश्वगुरु बनाने का सपना दिखाया।

Baba Shivanand death: जिस योग ने भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना दिखाया, उसी योग को जीने वाले 128 वर्षीय पद्मश्री योग गुरु बाबा शिवानंद अब हमारे बीच नहीं रहे। योग, संयम और सादगी से भरी उनकी जीवन यात्रा का अंत शनिवार रात बनारस में हुआ। पिछले तीन दिनों से बीएचयू में भर्ती शिवानंद बाबा को सांस लेने में दिक्कत थी, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर ने पूरे शहर को शोक में डुबो दिया है।

उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए दुर्गाकुंड स्थित आश्रम में रखा गया है। रविवार को उनका अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट पर किया जाएगा। बाबा शिवानंद की अंतिम यात्रा में उनके हजारों अनुयायी और श्रद्धालु शामिल होने की उम्मीद है।

2022 में मिला था पद्मश्री, बने थे भारत के सबसे उम्रदराज सम्मानित नागरिक

योग गुरु बाबा शिवानंद को वर्ष 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री सम्मान से नवाजा था। यह सम्मान उन्हें योग साधना, संयमित जीवनशैली और समाजसेवा के लिए दिया गया था। पद्मश्री पाने वाले वे देश के सबसे उम्रदराज शख्स थे। काशी के दुर्गाकुंड में एक छोटे से फ्लैट में रहने वाले बाबा अपनी योग शक्ति से देश और दुनिया में चर्चित थे।

दुनिया में फैला था शिवानंद बाबा का योग संदेश

शिवानंद बाबा सिर्फ एक योग गुरु नहीं थे, वे योगिक जीवनशैली के आदर्श थे। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया, कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन अपने गुरु के सान्निध्य में संस्कृत, गीता और अंग्रेजी तक सीखी। 6 साल की उम्र से ही उन्होंने योग को जीवन का हिस्सा बना लिया था। उनके अनुयायी भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी फैले हैं।

संयमित जीवनशैली का था चमत्कारी असर

बाबा सिर्फ उबला हुआ खाना खाते थे – जिसमें नमक न के बराबर होता था। वे फल, दूध या मसालेदार भोजन से पूरी तरह परहेज करते थे। रात में जौ का दलिया, आलू का चोखा और उबली सब्जियाँ उनका नियमित भोजन था। वे 9 बजे तक सो जाते थे और सुबह गीता पाठ और योग से दिन की शुरुआत करते थे।

काशी के घाटों से लेकर प्रयागराज कुंभ तक फैला था प्रभाव

बाबा शिवानंद काशी के घाटों पर योग शिक्षा देते थे और प्रयागराज कुंभ में भी उनका विशेष शिविर लगता था। इस उम्र में भी वे खुद सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते थे। उन्होंने अपनी सादगी और तपस्या से खुद को योग का प्रतीक बना लिया था। शिष्यों का कहना है कि बाबा दिनभर में कई बार पैदल आश्रम से घाट तक आते-जाते थे।

चार साल की उम्र में छोड़ा था घर, भूख ने छीना था परिवार

बाबा का जन्म 8 अगस्त 1896 को अविभाजित बंगाल के श्रीहट्ट जिले के हरिपुर गाँव में हुआ था। महज 4 साल की उम्र में उनका परिवार भूख के चलते बिखर गया। माता-पिता और बहन की मौत के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और गुरु के साथ आध्यात्मिक जीवन शुरू कर दिया। तब से लेकर अंतिम सांस तक वे योग और सेवा के मार्ग पर ही चलते रहे।

योग गुरु बाबा शिवानंद का निधन भारत के उस अध्यात्मिक युग का अंत है, जिसमें जीवन को लंबा नहीं बल्कि सार्थक बनाने की कला सिखाई जाती थी। उनका जीवन आज के दौर में एक प्रेरणा है – कैसे सादगी, संयम और योग से मनुष्य दीर्घायु और स्वस्थ जीवन जी सकता है। बाबा आज भले ही इस संसार में नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, सिद्धांत और योगपथ आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

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