
Pooja Barabanki science model: बाराबंकी के एक छोटे से गांव में मिट्टी के घर, ढही हुई दीवारों और दीये की रोशनी में पढ़ाई करने वाली एक बच्ची, आज भारत का नाम जापान में रोशन कर चुकी है। यह कोई काल्पनिक कथा नहीं, बल्कि 12वीं की छात्रा पूजा की सच्ची कहानी है। पूजा का जीवन बताता है कि अगर हौसले बुलंद हों, तो गरीबी, अभाव और सीमाएं भी रास्ता रोक नहीं सकतीं।
सिरौलीगौसपुर तहसील के अगेहरा गांव में रहने वाली पूजा एक साधारण मजदूर परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता पुत्तीलाल दिहाड़ी मजदूर हैं और मां सुनीला एक सरकारी स्कूल में रसोईया हैं। इतने सीमित संसाधनों के बावजूद पूजा ने विज्ञान मॉडल बनाकर न सिर्फ भारत में पहचान बनाई, बल्कि जापान में जाकर भारत का प्रतिनिधित्व भी किया।
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पूजा ने एक ऐसा धूल रहित थ्रेशर मशीन मॉडल तैयार किया, जो खेतों में काम आने वाली थ्रेशर मशीन से उड़ने वाली धूल को रोक सकता है। यह मॉडल न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि स्कूली बच्चों और किसानों दोनों के लिए बेहद उपयोगी है। पूजा ने यह मॉडल महज 3000 रुपये की लागत से तैयार किया — जो उसके परिवार के लिए बड़ी रकम थी।
आज भी पूजा का परिवार बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। मीटर लग चुका है लेकिन खंभे से घर तक की वायरिंग के पैसे नहीं हैं। इसके बावजूद पूजा दीये की टिमटिमाती रोशनी में पढ़ाई कर रही हैं। यह वही समर्पण है जो उन्हें राष्ट्रीय स्तर तक ले गया।
क्लास 8 में पूजा ने स्कूल में पहली बार विज्ञान मॉडल बनाकर सभी का ध्यान खींचा। यह मॉडल जिलास्तर, मंडलस्तर और फिर राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में चुना गया। इसके बाद 2020 और 2024 के राष्ट्रीय विज्ञान मेलों में उन्होंने अपनी जगह बनाई और अंततः 2025 में भारत सरकार ने उन्हें जापान भेजा।
जून 2025 में जब पूजा जापान पहुंचीं तो वहां उन्होंने अपने मॉडल और विचारों से कई विशेषज्ञों को प्रभावित किया। पूजा का मानना है कि अब उनकी असली जिम्मेदारी शुरू होती है — अपने जैसे बच्चों को शिक्षा के ज़रिए रोशनी की राह दिखाना। उनका सपना है कि वे अपने गांव के गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल खोलें।
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