
Why Bharat bandh in UP: 9 जुलाई को देशभर में एक बार फिर 'भारत बंद' का ऐलान हुआ है, और इसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में भी देखा जा सकता है। इस बंद का आह्वान केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने किया है, जिसमें देश के 25 करोड़ से अधिक कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। इसमें बैंकिंग, परिवहन, बीमा, डाक सेवा, कोयला खनन से लेकर फैक्ट्रियों तक की सेवाएं ठप होने की संभावना है। विपक्षी दलों ने भी समर्थन देते हुए चक्का जाम की चेतावनी दी है।
इस हड़ताल का नेतृत्व देश की प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा किया जा रहा है। यूनियनों का आरोप है कि मौजूदा सरकार मजदूरों और किसानों के खिलाफ नीतियां बना रही है। बंद को लेकर कहा गया है कि यह एक मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी कॉरपोरेट-समर्थक नीतियोंके खिलाफ जनआंदोलन है।
यह हड़ताल पूरे देश के बैंकिंग सेक्टर को प्रभावित करेगी। सरकारी बैंकों में कामकाज ठप रहने की आशंका है। वहीं राज्य परिवहन सेवाओं के ठप पड़ने से आम लोगों को सफर में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इंश्योरेंस, पोस्टल सेवा, कोयला खनन, सार्वजनिक उपक्रम और कई औद्योगिक इकाइयों में भी कामकाज रुकने की संभावना है।
उत्तर प्रदेश में इस बंद को लेकर राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं। प्रमुख विपक्षी दलों ने सरकार की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतरने और चक्का जाम करने की योजना बनाई है। ऐसे में लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी जैसे बड़े शहरों में सुरक्षा के व्यापक इंतज़ाम किए जा रहे हैं। प्रशासन ने धारा 144 लागू करने और संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात करने का निर्णय लिया है।
इस हड़ताल की मुख्य मांगों को लेकर यूनियनों ने पहले ही श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को एक 17-सूत्रीय चार्टर सौंपा था। यूनियनों का कहना है कि सरकार पिछले 10 वर्षों से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं कर रही है। इसके साथ ही, निजीकरण, ठेका प्रथा और श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर भी गहरी नाराजगी जताई गई है।
इस भारत बंद में किसान संगठन और ग्रामीण स्तर के कर्मचारी भी शामिल होंगे। उनका कहना है कि खेती को लेकर उठाए गए फैसले और समर्थन मूल्य की अनदेखी उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है। किसानों ने कहा कि जब तक सरकार MSP पर कानून नहीं लाती और पुराने कृषि बिल पूरी तरह रद्द नहीं करती, तब तक विरोध जारी रहेगा।
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