
राजेश कुमार पांडेय। उत्तर प्रदेश में साल 2005 से लेकर करीबन 2008 तक ऐसे अपराधियों का दौर था, जो 10-10 सालों तक अपराध करने के बाद भी पुलिस की गिरफ़्त से दूर थे। हम आपको ऐसे ही एक अपराधी के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पूर्वी यूपी और बिहार में आतंक का पर्याय था। जिसकी क्रिमिनल हिस्ट्री और कॉन्टैक्ट डिटेल के बारे में मुश्किल से जानकारी मिल पाई। उसके खिलाफ करीबन 25 मुकदमे थे, एसटीएफ से मुठभेड़ के 8 साल पहले तक उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सका। अपराधी ज्वाला यादव यूपी के बलिया, देवरिया, बिहार के गोपालगंज, सिवान और धनबाद (झारखंड) में सक्रिय था। ज्वाला यादव के खिलाफ पहला मुकदमा साल 1994 में दर्ज हुआ। वह लगातार अपराध करता रहा, पर पुलिस की पकड़ से दूर रहा।
रंगदारी से मना करने पर सनसनीखेज हत्या
यूपी के देवरिया जिले में 2 जून 2005 को एक सनसनीखेज हत्या हुई। ज्वाला और उसके 3 साथियों ने जिले के बड़े खाद और सीमेंट व्यवसाई कृष्ण मुरारी छाबड़िया के फार्म हाउस में उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। पहले रंगदारी मांगी, फिर फ्री में कुछ मैटेरियल जैसे-खाद वगैरह लेने की कोशिश की। उन्होंने बार-बार ये सामान देने से मना किया था।
पूर्वी यूपी में सिर चढ़कर बोलने लगा आतंक
वारदात के बाद पूर्वी यूपी में ज्वाला का आतंक सिर चढ़ कर बोलने लगा। वैसे तो पूर्वी यूपी बड़ा इलाका है। पर उसने देवरिया, बलिया और बिहार से लगने वाले प्रदेश के हिस्सों में एक के बाद एक बड़ी हत्या की वारदातों को अंजाम दिया। साल 2001 में धनबाद में बड़ी सनसनीखेज हत्या को भी अंजाम दिया था। उसकी वजह से धनबाद में कानून-व्यवस्था की बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी।
कोई कुछ बताने को तैयार नहीं
देवरिया के तहसील हेडक्वार्टर लार में इसका आतंक था। उसके बारे में कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था। यहां तक कि थाने में भी बड़ी मुश्किल से इसके आपराधिक इतिहास और कॉन्टैक्ट डिटेल की जानकारी मिल पाई। 2 जून 2005 के छाबड़िया हत्याकांड के बाद एसटीएफ की एक टीम पूर्वी यूपी भेजी गई, जो बिहार के सिवान, गोपालगंज और झारखंड के धनबाद भी गई। ज्वाला और उससे जुड़े लोगों के मूवमेंट के बारे में जानकारी की। उस समय पूरी एसटीएफ मोबाईल नंबर बेस्ड एक्सरसाइज़ कर रही थी। ज्वाला के मामले में यही हुआ।
इनाम घोषित होते ही अपराधी हो जाते थे सतर्क
ज्वाला यादव शातिर अपराधी था। जब भी एसटीएफ का मूवमेंट होता था, तो उसके लोगों को इसकी जानकारी हो जाती थी और वह भाग निकलने में सफल हो जाता था। साल 1998 से ही बड़े माफिया गैंग और डेयरिंग क्रिमिनल के एनकाउंटर का सेहरा एसटीएफ के सिर पर था, तो अपराधियों पर जैसे ही इनाम घोषित होता था, वैसे ही उन्हें यह अंदाजा हो जाता था कि उनके मामले में एसटीएफ लगाई गई है और अंत बहुत अच्छा नहीं होगा। ज्वाला पर भी उस समय का सबसे अधिक 20 हज़ार रुपए का इनाम था, जो डीजी आफिस से तय होता था।
इलाहाबाद में मिली लोकेशन
उसकी कई जगह लोकेशन मिली। टीमों ने रात-रात भर इंतज़ार किया, पर वह नहीं मिला। 10 सितंबर 2005 को सूचना मिली कि ज्वाला यादव अपने वकील से मिलने इलाहाबाद हाईकोर्ट गया है। उसके बाद ज्वाला की कोई लोकेशन नहीं मिली। फिर अचानक सूचना मिली कि वह इलाहाबाद में अपने वकीलों से बात करने के बाद बनारस की तरफ निकल रहा है। उसकी इंडिका गाड़ी का नम्बर मिल गया था, जो उसने देवरिया में 20 जनवरी 2005 को उभाऊं, बलिया के रहने वाले व्यवसाई अजीत गुप्ता को मारकर लूटी थी।
लूटी गई 4-5 गाड़ियों का करता था इस्तेमाल
ज्वाला लूटी गई 4-5 गाड़ियों का इस्तेमाल कर अलग-अलग काम करता था। टीम ने उससे मिलने वाले संभावित वकीलों के आसपास पार्क गाड़ियों के नम्बर नोट कर लिए थे। उन गाड़ियों के मालिक के बारे में पता किया गया तो सामने आया कि एक वकील की गाड़ी के पास पार्क इंडिका गाड़ी लूटी गई है। इससे यह कनेक्ट हो गया कि ज्वाला इसी गाड़ी से सफर कर रहा है।
इलाहाबाद के झूंसी से उसकी गाड़ी वाराणसी की तरफ निकली और इलाहाबाद के हड़िया बाज़ार के बासुपुर गांव में उसकी घेराबंदी हुई। स्थानीय पुलिस की मदद से थोड़ी देर के लिए रोड ब्लॉक किया गया। दोनों तरफ से काफी देर तक एक्सचेंज ऑफ फ़ायर हुआ। बाद में पता लगा कि 20 हज़ार का इनामी ज्वाला इसी मुठभेड़ में मारा गया। साल 1994 से 9 हत्याएं समेत 25 बड़े अपराध करने के बाद भी वह कभी पुलिस के चंगुल में नहीं आया। न ही कभी किसी मामले में कोर्ट गया। पुलिस दबिश पर दबिश देती रही।
-किस्सागोई के लिए मशहूर राजेश कुमार पांडेय पूर्व आईपीएस हैं।
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