
लखनऊ। प्रयागराज में 3 जनवरी 2026 से शुरू होने जा रहे माघ मेला 2026 ने आस्था के साथ-साथ ग्रामीणों के लिए रोजगार के नए रास्ते खोल दिए हैं। संगम क्षेत्र के आसपास बसे गांवों में ग्रामीण महिलाएं गोबर के उपले और मिट्टी के चूल्हे तैयार कर अपनी आजीविका मजबूत कर रही हैं। माघ मेला क्षेत्र से जुड़े 27 गांवों में इन दिनों उपलों और मिट्टी के चूल्हों का बड़ा बाजार लग चुका है। गंगा के तटीय गांवों में महिलाएं दिनभर गोबर के उपले बनाती हैं, जिन्हें माघ महीने में कल्पवासियों और साधु-संतों के शिविरों में भेजा जाता है।
माघ मेला होटल, ट्रैवल, टेंट और फूड सेक्टर के साथ-साथ छोटे काम करने वाले ग्रामीण परिवारों के लिए भी आय का बड़ा जरिया बन गया है। पशुपालन से जुड़े करीब 15 हजार ग्रामीण परिवार इस आयोजन से सीधे लाभान्वित हो रहे हैं।
बदरा सोनौटी गांव की विमला यादव बताती हैं कि उनके घर की गाय-भैंसों से बने उपले सालभर इकट्ठा किए जाते हैं और माघ में कल्पवासियों को बेचे जाते हैं। वहीं मलावा खुर्द गांव की आरती को अब तक 7 हजार मिट्टी के चूल्हों के ऑर्डर मिल चुके हैं।
माघ मेला नाविक समाज के लिए भी खुशहाली लेकर आया है। निषाद समाज के कई परिवार नई नावें तैयार कर रहे हैं। दारागंज के बबलू निषाद कहते हैं कि माघ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अगर अनुमान के अनुसार रही, तो नाविक समाज की आमदनी कई गुना बढ़ जाएगी।
मेला प्रशासन ने सुरक्षा कारणों से शिविरों में हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडर के इस्तेमाल पर रोक लगाई है। इससे पारंपरिक ईंधन—उपले और मिट्टी के चूल्हों—की मांग और बढ़ गई है।
तीर्थ पुरोहित प्रदीप तिवारी के अनुसार, कल्पवासी पवित्रता और परंपरा को सबसे ऊपर रखते हैं। इसलिए वे मिट्टी के चूल्हों पर उपलों से बना भोजन ही पसंद करते हैं, जिससे ग्रामीण महिलाओं की मेहनत को सीधा लाभ मिल रहा है।
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