
गांव की कच्ची पगडंडियों से उठकर बदलती ज़िंदगियों की यह कहानी सिर्फ एक पहल का नहीं, बल्कि उस आत्मविश्वास का प्रमाण है जो राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने उत्तर प्रदेश की महिलाओं में जगाया है। जो महिलाएँ कभी घर की दहलीज तक सीमित थीं, आज वही बिजली सखी बनकर पूरे जिले की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा रही हैं। परिवार के सहारे की तलाश में भटकती यह महिलाएँ आज खुद परिवारों की रीढ़ बन चुकी हैं।
इस्माइलपुर की मनीषा साहू कभी अपनी टूटी-फूटी साइकिल से गांव-गांव जाकर बिजली के बिल जमा करती थीं। घर की आर्थिक हालत इतनी कमजोर थी कि बच्चों की पढ़ाई तक छूट गई। पति असाध्य रोग से पीड़ित थे, और जिम्मेदारियों के बोझ तले संघर्ष ही उनका जीवन था।
साल 2020 में जब मनीषा ‘मां गंगा स्वयं सहायता समूह’ से जुड़ीं, तभी उनकी जिंदगी ने नया मोड़ लिया। बिजली सखी बनने के बाद शुरू हुई छोटी सी आमदनी धीरे-धीरे बड़ी उपलब्धियों में बदलने लगी। आज वही मनीषा हर महीने 20 हजार रुपये से अधिक कमा रही हैं, स्कूटी खरीद चुकी हैं और गांव की दो दर्जन से अधिक महिलाओं को भी इस पहल से जोड़ चुकी हैं। मनीषा साहू अब सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की पहचान बन गई हैं।
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महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की दिशा में योगी सरकार के स्वयं सहायता समूह लगातार अहम भूमिका निभा रहे हैं। प्रयागराज के उपायुक्त, एनएलआरएम अशोक कुमार गुप्ता के मुताबिक, जिले में 820 महिलाएँ विद्युत सखी के रूप में प्रशिक्षित की जा चुकी हैं, जिनमें 324 सखियाँ वर्तमान में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। इन बिजली सखियों का काम सिर्फ बिल जमा करवाना नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं को बिजली विभाग की योजनाओं से अवगत कराना भी है।
सबसे बड़ी उपलब्धि यह कि मनीषा साहू के नेतृत्व में ‘मां गंगा महिला स्वयं सहायता समूह’ ने नवंबर के पहले सप्ताह तक बिजली विभाग को 12 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व दिलाया है। अनुमान है कि यह आंकड़ा वित्तीय वर्ष के अंत तक 22 करोड़ रुपये को पार कर जाएगा।
जो महिलाएँ कभी परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में संघर्ष करती थीं, आज वही डिजिटल भुगतान, बिजली बिल प्रबंधन और ग्रामीण सेवाओं को सुचारू करने में योगदान दे रही हैं। बिजली सखी मॉडल न सिर्फ महिलाओं की आय बढ़ा रहा है, बल्कि गांवों में सरकारी योजनाओं को अंतिम छोर तक पहुँचाने का भी सशक्त माध्यम बन रहा है।
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