
महाकुम्भ नगर,15 फरवरी। प्रयागराज महाकुम्भ अपने समापन की तरफ अग्रसर है। बसंत पंचमी के अमृत स्नान के बाद पहले 13 अखाड़ों की महाकुम्भ नगर से विदाई और फिर माघ पूर्णिमा के स्नान पर्व के बाद कल्पवासियों की रवानगी हो चुकी है। इसी क्रम में माघ माह के कल्पवास में प्रथम साधक दंडी स्वामी संतो का भी महा कुम्भ नगर से प्रस्थान हो गया।
संगम की पावन रेती पर एक महीने से प्रवास कर रहे सनातन धर्म के संरक्षक माने जाने दंडी स्वामी संतो ने त्रयोदशी को महाकुम्भ में अपना अंतिम स्नान किया और उसके बाद अपने अपने मठों की तरफ प्रस्थान कर गए। अखिल भारतीय दंडी परिषद के प्रमुख जगद्गुरु स्वामी महेशाश्रम जी बताते हैं कि माघ के महीने का कल्पवास तो माघ पूर्णिमा के साथ पुण्य की डुबकी लगाने से पूर्ण हो जाता है लेकिन कल्पवास करते समय जाने अनजाने में कभी दृष्टि पाप हो जाता है तो कभी श्रवण या स्पर्श पाप। इन सभी तरह के पाप संगम में त्रिजटा स्नान के बाद ही कटता है। फाल्गुन की त्रयोदशी को इस स्नान को करने के बाद सभी दंडी स्वामी संत महाकुंभ से अपने अपने स्थान के लिए रवाना हो गए।
प्रयागराज महाकुम्भ से विदा होने के पूर्व दंडी स्वामी संतो ने इस महाकुम्भ के स्वरूप और योगदान पर भी अपने विचार साझा किए। दंडी संन्यासी परिषद के अध्यक्ष स्वामी शंकराश्रम का कहना है कि पिछले 45 वर्षों से वह त्रिवेणी तट पर माघ महीने का कल्पवास कर रहे हैं। इस महाकुम्भ में 50 करोड़ से अधिक सनातनियों के आगमन ने बता दिया है कि सनातन की शक्ति का विस्तार हो रहा है। इस विस्तार में भी इस बार के आयोजन को अलग बनाने वाली अभिवृति यह रही है कि महाकुम्भ आने वाले आगंतुकों में प्रौढ़ और बुजुर्ग लोगों की तुलना में 18 से 35 आयु वर्ग की नई पीढ़ी की मौजूदगी का अधिक रहना। पहले नई पीढ़ी में धर्म और सनातन के प्रति जो उदासीनता या तटस्थता रहती थी इस बार ऐसा नहीं दिखा। नई पीढ़ी की इस नई खेप ने संगम में डुबकी भी लगाई और उसके मस्तक पर सनातन के प्रतीक तिलक की उपस्थिति भी दिखी, सेवा भाव भी दिखा। यह सनातन की तरफ नई पीढ़ी की उत्सुकता और झुकाव का संकेत है। यह बदलाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की महाकुम्भ के आयोजन और उसके प्रचार प्रसार के संकल्प से जुड़ा लगता है। इन युवाओं के यूथ आइकॉन बन गए हैं योगी जी।
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