महाकुंभ 2025: आस्था और श्रद्धा का महापर्व, पहले स्नान पर उमड़े 1 करोड़ श्रद्धालु

Published : Jan 13, 2025, 04:41 AM ISTUpdated : Jan 13, 2025, 04:43 AM IST
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सार

महाकुंभ 2025 का भव्य उद्घाटन पौष पूर्णिमा के पहले स्नान के साथ हुआ, जहाँ 1 करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। कल्पवासियों का वास भी शुरू हो गया है और प्रशासन ने अभूतपूर्व व्यवस्थाएं की हैं।

महाकुंभ नगर, प्रयागराज: महाकुंभ 2025 का भव्य उद्घाटन पौष पूर्णिमा के पहले स्नान के साथ हुआ, और संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। इस अवसर पर 1 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था को व्यक्त करते हुए गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान किया। इस भव्य दृश्य ने एक बार फिर महाकुंभ की दिव्यता और भारतीय धर्म की गहरी जड़ों को प्रदर्शित किया।

पहले स्नान का महत्व

पौष पूर्णिमा का स्नान महाकुंभ के सबसे पवित्र स्नानों में से एक है। इसे पापों के नाश और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन संगम में स्नान करने से न केवल धार्मिक उन्नति होती है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति की भी मान्यता है। महाकुंभ में भाग लेने वाले श्रद्धालु इस दिन को अपने जीवन को पवित्र करने के सबसे बड़े अवसर के रूप में देखते हैं।

कल्पवास का आरंभ

इस स्नान के साथ ही संगम तट पर कल्पवासियों का वास भी शुरू हो गया है। वे एक महीने तक साधना, उपवास और ध्यान में लीन रहते हैं, जिससे उनकी आत्मशुद्धि होती है। इस बार 20 से 25 लाख कल्पवासियों के शामिल होने का अनुमान है। यह एक विशेष अवसर होता है, जिसमें साधक अपनी आत्मा को शुद्ध करने के लिए कठिन तपस्या करते हैं।

व्यवस्थाओं की भव्यता और विस्तार

महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने अभूतपूर्व व्यवस्थाएं की हैं। संगम नोज के क्षेत्र में करीब 12 किलोमीटर तक स्नान घाट बनाए गए हैं। सिंचाई विभाग ने 85 दिनों में संगम नोज का क्षेत्र बढ़ा कर 2 हेक्टेयर तक कर दिया है, जिससे हर घंटे 2 लाख श्रद्धालु स्नान कर सकें।

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सुरक्षा और यातायात की विशेष व्यवस्थाएं

महाकुंभ में सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। 1500 से अधिक सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन की निगरानी से पूरे मेले की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। इसके अलावा, यातायात व्यवस्था को भी सुचारु रखा गया है, ताकि श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो।

महाकुंभ का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व

महाकुंभ, भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में होता है। इसकी शुरुआत प्राचीन ग्रंथों, वेदों और पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन के समय से जुड़ी हुई है। यही वह स्थान है जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं और इसे पवित्र माना गया। इस आयोजन में देश-विदेश से साधु-संत, नागा साधु, अखाड़े और भक्त बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह मानवता के सिद्धांत "वसुधैव कुटुंबकम" का आदर्श प्रस्तुत करता है, जो समृद्ध भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है। साथ ही, यह आयोजन भारतीय लोककलाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और प्रदर्शनों का भी आयोजन करता है, जो भारतीय विरासत को जीवित रखते हैं।

महाकुंभ 2025: आधुनिक तकनीक और प्राचीन परंपरा का संगम

इस बार महाकुंभ में आधुनिक तकनीक और प्राचीन परंपराओं का सुंदर संगम देखने को मिल रहा है। श्रद्धालुओं को डिजिटल माध्यम से मार्गदर्शन और सहायता देने के लिए मोबाइल एप्स, QR कोड आधारित नेविगेशन और हेल्पलाइन की व्यवस्था की गई है, जिससे सभी को सुविधा हो रही है।

महाकुंभ: आस्था, सेवा और एकता का प्रतीक

महाकुंभ न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सेवा और समर्पण का भी आदर्श प्रस्तुत करता है। लाखों लोग इस आयोजन में बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते हैं और यह संदेश देते हैं कि आस्था, विश्वास, और एकता की शक्ति कितनी विशाल हो सकती है।

महाकुंभ 2025 का पहला स्नान भारतीय संस्कृति, शांति और एकता का एक उदाहरण है, जो प्रयागराज में आस्था के महासागर को एक बार फिर जीवित कर रहा है। इस महापर्व में हर किसी का योगदान और भागीदारी महाकुंभ की समृद्ध और निरंतरता को दर्शाता है।

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