
कभी तीखे भाषणों और विवादों के बीच अपनी पहचान बनाने वाले राघवेंद्र प्रताप सिंह ने एक बार फिर ऐसी भाषा का सहारा लिया है जो सार्वजनिक गुस्से और सवालों को जन्म दे रही है। एक छोटे से गांव की जनसभा में दिया गया उनका वह वाक्य “हमारी दो ले गए, तो तुम उनकी दस लाओ” न सिर्फ सोशल मीडिया पर आग लगा गया बल्कि स्थानीय राजनीति और सामाजिक माहौल में भी हलचल पैदा कर रहा है। आइए जानते हैं कौन हैं राघवेंद्र, उनका राजनीतिक सफर कैसा रहा और इस बयान के संभावित निहितार्थ क्या हो सकते हैं।
राघवेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 अप्रैल 1966 को बस्ती जिले में हुआ। दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ के संपर्क में आए और हिंदू युवा वाहिनी से जुड़ गए। संगठन के भीतर उनका कद तेजी से बढ़ा और उन्हें प्रदेश प्रभारी का पद भी मिला। हिंदू युवा वाहिनी से राजनीतिक जुड़ाव ने उन्हें सघन सक्रियता और मुखर नेतृत्व की छवि दी — जो बाद में चुनावी राजनीति में काम आई।
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2012 में उन्हें सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज से बीजेपी का टिकट मिला, लेकिन उस बार उन्हें खास सफलता नहीं मिली। 2017 का चुनाव उनके लिए मोड़ साबित हुआ, इस बार उन्होंने बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार सैय्यदा खातून को मात्र 171 वोटों के अंतर से हराकर विधायक बनाया। हालांकि 2022 में वह अपनी सीट नहीं बचा पाए और सैय्यदा खातून ने उन्हें हराकर वापसी की। इस तरह उनका चुनावी सफर उतार-चढ़ाव से भरपूर रहा है, खासकर उस इलाके में जहाँ मतदाता संरचना मुस्लिम-बहुल है।
16 अक्टूबर को धनखरपुर गांव में आयोजित जनसभा के दौरान राघवेंद्र का दिया गया एक बयान वायरल हुआ। वीडियो में वे कहते दिखे: “हमारे समाज की 2 लड़कियां वो ले गए, तुम मुसलमानों की 10 लड़कियां लाओ... 2 पे 10 से कम मंजूर नहीं है और जो यह ले के आएगा उसके खाने-पीने, नौकरी का इंतजाम हम करेंगे... मुसलमानों सुन लो, यह हमें पच नहीं रहा है और इसका बदला कुछ भारी होना ही होना है।” इस बयान ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ और आलोचना पैदा कर दी है। कई लोगों ने इसे साम्प्रदायिक और खतरनाक बताया तो कुछ समर्थकों ने इसे भावनात्मक प्रतिक्रिया करार दिया।
वायरल वीडियो के बाद राघवेंद्र ने अपने बयान पर कोई पश्चाताप व्यक्त नहीं किया। उन्होंने इसे एक घटना पर संवेदना व्यक्त करने की अवस्था का हिस्सा बताया और कहा कि "क्या साम्प्रदायिकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल हिंदू की है? वह हमारे बहू-बेटियों को भगा ले जाएं और हम सहते रहें" जैसे शब्दों से उन्होंने अपनी बात दुहराई। तथ्यों के अनुसार वे उस घटना पर बोलने गए थे और अपनी प्रतिक्रिया में यह बयान दिया।
राघवेंद्र हमेशा ही मुखर और फायरब्रांड नेता के रूप में जाने गए हैं। हिंदू युवा वाहिनी से राजनीति तक के सफर में उनकी शैली परंपरागत व तीखी रही है, जिसकी वजह से वे कभी-भी लंबे समय तक सुर्खियों से दूर नहीं रहे। 2017 की जीत ने उन्हें विधायकी का मुकाम दिया, पर 2022 की हार ने दिखाया कि राजनीतिक स्थिरता पैमाने पर हमेशा संतुलित नहीं रहती।
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