
सहारनपुर। सहारनपुर के नकुड़ में सम्राट मिहिर भोज गुर्जर गौरव यात्रा निकालने को लेकर माहौल गरमा उठा। प्रशासन ने एक पक्ष को यात्रा निकालने की इजाजत नहीं दी। फिर भी सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार गौरव यात्रा निकाली गई तो दूसरा पक्ष इसके विरोध में उतर आया और कलेक्ट्रेट का घेराव किया। कई जगहों पर प्रदर्शन हुए। नतीजतन ट्रैफिक जाम हो गया।
उधर, सोमवार को 5 जगहों पर बिना अनुमति निकली यात्रा रोकने के लिए बैरिकेडिंग लगाई गई थी। पर उसको तोड़ते हुए फंदपुर से यात्रा निकली जो नकुड़ और अंबेहटा होते हुए फिर फंदपुर पहुंची। मामले की संवेदनशीलता को भांपते हुए और अफवाहों पर कंट्रोल के लिए प्रशासन ने इंटरनेट बंद करने का आदेश दिया। बताया जा रहा है कि अब वीडियो के आधार पर पहचान कर गुर्जर और राजपूत समाज के लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने की तैयारी की जा रही है। आपके भी जेहन में ख्याल उठ रहा होगा कि आखिर कौन हैं सम्राट मिहिर भोज?
कौन हैं सम्राट मिहिर भोज?
कन्नौज के सम्राट मिहिर भोज ने 836 से 885 ईस्वी तक यानी 49 साल तक शासन किया। उनकी पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था। उनकी वीरता के किस्से पूरी दुनिया में मशहूर हैं। उनका राज्य मुल्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से कर्नाटक तक था। उनके साम्राज्य की राजधानी कन्नौज थी। पंजाब, हरियाणा, यूपी, एमपी, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान जैसे मौजूदा राज्य उनके साम्राज्य के तहत आते थे।
शत्रुओं पर कहर बनकर टूट पड़ती थी सम्राट मिहिर भोज की सेना
इतिहासकार सतीश चन्द्र के अनुसार उन्होंने 'आदि वाराह' की उपाधि धारण की थी, जो उस समय के कुछ सिक्कों पर भी अंकित मिलती है। उनके शासन काल में चांदी और सोने के सिक्के प्रचलन में थे। अरबों के हमले कभी सफल नहीं हो सके। उनकी सेना शत्रुओं पर कहर बनकर टूट पड़ती थी। काबुल के राजा ललिया शाह उनके मित्र थे। कहा जाता है कि उन्होंने शाह को तुर्किस्तान के आक्रमण से बचाया था। उनका निधन 888 ईस्वी को 72 वर्ष की आयु में हुआ था। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने राज गद्दी अपने बेटे महेंद्रपाल का सौंप दी थी और खुद सन्यास ले लिया था।
सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर क्या है विवाद?
आपको बता दें कि पिछले सितम्बर 2021 में सीएम योगी आदित्यनाथ ने दादरी के मिहिर भोज पीजी कॉलेज में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था। कार्यक्रम शांतिपूर्ण ढंग से हुआ। सीएम सभा को संबोधित करने के बाद हापुड़ रवाना हो गए। पर उनके जाते ही गुर्जर समाज के लोगों ने मंच पर हंगामा करना शुरु कर दिया। वह सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा के लोकार्पण की शिलापट्ट में गुर्जर शब्द हटाने से नाराज थे। उनका तर्क था कि जब शिलापट्ट में पहले से गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज अंकित था तो फिर गुर्जर शब्द क्यों हटाया गया? यह उनके गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का अपमान है। उसके बाद सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर गुर्जर और राजपूत समाज के बीच टकराव अब सामने आया है। उस समय हुए हंगामे की आंच एमपी से लेकर राजस्थान तक फैली थी।
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