मुजफ्फरनगर दंगों-2013 के दौरान गैंग रेप का शिकार बनीं शमीमा(बदला हुआ नाम) ने बेशक 10 साल पुरानी कानूनी लड़ाई जीत ली है, लेकिन वो अपने गांव नहीं लौटना चाहती है। क्योंकि वह अपने और बच्चों की जिंदगी के लिए डरी हुई है।
नई दिल्ली. मुजफ्फरनगर दंगों-2013 के दौरान गैंग रेप का शिकार बनीं शमीमा(बदला हुआ नाम) ने बेशक 10 साल पुरानी कानूनी लड़ाई जीत ली है, लेकिन वो अपने गांव नहीं लौटना चाहती है। क्योंकि वह अपने और बच्चों की जिंदगी के लिए डरी हुई है। मुजफ्फरनगर की एक जिला अदालत ने मंगलवार(9 मई) को 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान महिला से सामूहिक बलात्कार के आरोप में दो लोगों को 20 साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी महेशवीर और सिकंदर पर 15-15 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
पीड़िता ने नई दिल्ली में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, "वे (दोषी) सलाखों के पीछे हैं, लेकिन उनका परिवार अभी भी हमें डराता है... मैं कभी गांव वापस नहीं लौटूंगी। मैं अपने और अपने बच्चों के लिए डरा हुई हूं।"
अपने वकीलों से घिरी शमीमा ने उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को याद करते हुए कहा कि वह घर के कामों में व्यस्त थीं, तब यह घटना हुई। एक मुस्लिम पुरुष और एक हिंदू महिला के बीच हुई घटना को लेकर जाट समुदाय के लोगों के गुस्से की खबरों के बाद गांव में तनाव बना हुआ था। गांव में अफवाहें थीं कि हत्याएं शुरू हो गई हैं और उसे गांव छोड़ने की सलाह दी गई।
पीड़िता ने कहा कि वो जान बचाकर अपने दो बच्चों के साथ भागी। वो खेतों से होकर दौड़ रही थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि कहां जाना है। मैं रास्ता भटक गई और दंगाइयों ने उसे पकड़ लिया।पुरुषों ने बारी-बारी से उसके साथ बलात्कार किया। शमीमा ने कहा, "मेरा तीन महीने का बच्चा मेरे बगल में था, जब मेरे साथ बलात्कार हो रहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि अगर विरोध किया, तो वे मेरे बच्चे को मार डालेंगे।"
न्याय के लिए अपने 10 साल के लंबे संघर्ष को याद करते हुए शमीमा ने कहा कि दोषियों के वकीलों ने उसके चरित्र पर सवाल उठाए और अपमानित किया। शमीमा ने काहा-"पिछले एक दशक में दोषियों के वकीलों ने मेरे चरित्र पर सवाल उठाए। मेरे पति से पूछा गया कि क्या मैं उनकी रखैल हूं। वे चाहते थे कि मैं केस वापस ले लूं, लेकिन मैं किसी भी कीमत पर न्याय चाहती थी।"
अनहद (एक्ट नाउ फॉर हार्मनी एंड डेमोक्रेसी) के संस्थापक ट्रस्टी हाशमी ने कहा, "7 में से छह गैंगरेप पीड़िताएं पीछे हट गईं, लेकिन वह (शमीमा) मजबूत बनी रहीं और आखिरकार, इस लंबी लड़ाई के बाद न्याय की जीत हुई।"
पीड़िता ने दावा किया कि ग्रोवर के आने से पहले कोई भी वकील उसका केस लड़ने के लिए तैयार नहीं था। शमीमा ने कहा कि वह 12, 10 और 6 साल के अपने तीन लड़कों के भविष्य पर ध्यान देना चाहती हैं। उसने कहा, "मेरा बड़ा बेटा डॉक्टर बनना चाहता है और दूसरा वकील। उनकी शिक्षा प्रभावित हुई है, लेकिन अब मैं उनके भविष्य पर ध्यान देना चाहती हूं और चाहती हूं कि वे अपने सपने पूरे करें।"
महेशवीर और सिकंदर को इंडियन पैनल कोड की धारा 376 (2) (जी) (सांप्रदायिक या सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार करने की सजा), 376 डी (सामूहिक बलात्कार), और 506 (आपराधिक धमकी की सजा) के तहत दोषी ठहराया गया था।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 2013 में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच हुई झड़पों में 60 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, जबकि 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, एसआईटी ने अदालत में तीन लोगों कुलदीप, महेशवीर और सिकंदर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। मुकदमे की सुनवाई के दौरान कुलदीप की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को इस मामले को प्राथमिकता पर लेने का निर्देश देते हुए कहा था कि मामले को लंबी तारीख के लिए स्थगित नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत का आदेश पीड़िता द्वारा मामले की जल्द से जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद आया है। कहा गया कि शुरुआत से ही पक्षपातपूर्ण जांच हुई थी और जानबूझकर और लंबी देरी का मतलब उसे थका देना था।
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