
Sharda University suicide case: शारदा विश्वविद्यालय की छात्रा ज्योति ने अपने हॉस्टल के कमरे में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र पर बड़ा सवाल भी खड़ा करती है, क्या छात्रों की परेशानियों को समय पर सुना जा रहा है?
ज्योति के कमरे से मिले सुसाइड नोट ने मामले को गंभीर बना दिया है। नोट में उसने दो प्रोफेसरों डॉ. महेंद्र सिंह चौहान और डॉ. शैरी वशिष्ठ को आत्महत्या के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया है। यह पहली बार नहीं है जब शिक्षकों पर मानसिक उत्पीड़न के आरोप लगे हों, लेकिन इस बार परिणाम भयावह रहा।
कुछ छात्रों ने खुलकर बताया कि ज्योति लगातार तनाव में थी और उक्त प्रोफेसरों से वह परेशान रहती थी। सवाल ये उठता है कि अगर ये बात विश्वविद्यालय को पहले से पता थी, तो क्या कोई मदद की गई? या फिर ये मामला धीरे-धीरे एक खतरनाक मोड़ की ओर बढ़ता रहा?
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शुक्रवार की शाम ज्योति अकेली थी। उसकी रूममेट्स बाहर गई थीं। जब एक छात्रा लौटकर आई तो कमरा अंदर से बंद था। दरवाज़ा खोलने पर ज्योति को फंदे से लटका पाया गया। सवाल ये है, अगर कुछ मिनट पहले पहुंचा गया होता, तो क्या जान बच सकती थी?
घटना के बाद विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों और परिजनों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। छात्रों ने ‘जस्टिस फॉर ज्योति’ की मांग को लेकर प्रदर्शन किया और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल खड़े किए। पुलिस और छात्रों के बीच तनातनी भी देखी गई। ये सिर्फ एक आत्महत्या नहीं रही, बल्कि आक्रोश का कारण बन गई।
पुलिस ने परिजनों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर ली है और दोनों नामजद आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया है। साथ ही विश्वविद्यालय ने भी प्रोफेसरों को निलंबित कर दिया है। जांच जारी है, लेकिन यह मामला अब सिर्फ जांच का नहीं, बल्कि सिस्टम की जवाबदेही का बन चुका है।
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