'रामचरितमानस में सब बकवास, इस पर लगे बैन' सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का विवादित बयान आया सामने

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर विवादित टिप्पणी की है। उन्होंने इस पर बैन लगाने की मांग तक की है। इसी के साथ उनके द्वारा बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को लेकर भी बयान दिया।

Contributor Asianet | Published : Jan 22, 2023 12:17 PM IST / Updated: Jan 22 2023, 06:27 PM IST

लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य ने तुलसीदास की रामायण को लेकर विवादित बयान दिया है। उन्होंने रामचरितमानस की चौपाईयों पर सवाल खड़े करते हुए इस पर बैन लगाने की मांग की है। इसी के साथ उन्होंने बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री पर भी बयान दिया। उन्होंने कहा कि देश का दुर्भाग्य है कि धर्म के ठेकेदार ही धर्म को नीलाम कर रहे हैं। तमाम समाज सुधारकों ने प्रयास किया और देश तरक्की के रास्ते पर चल पड़ा, लेकिन दकियानूसी सोच वाले बाबा समाज में रूढ़िवादी परंपराओं, ढकोसला, अंधविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

रामचरितमानस की चौपाई पर जताई आपत्ति

स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस की चौपाई ढोल, गवांर, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि हिंदू धर्म का चौथा वर्ण शूद्र समुदाय है। यह पूरी आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। उसके ताड़ना के बारे में कहना आपत्तिजनक है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने नैतिकता के आधार पर इन जातिसूचक दोहों और चौपाईयों को रामायण से निकलवाने तक के लिए कह दिया। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि ये देश धर्मनिरपेक्ष देश है। किसी भी धर्म को गाली देने का अधिकारी किसी के पास में नहीं है। इसी के साथ उन्होंने तमाम अन्य बातों को लेकर भी अपने विचार रखे।

'कैसे किसी जाति को दिया जा सकता है नीच का सर्टिफिकेट'

उन्होंने कहा कि हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। सभी धर्मों का मकसद मानव कल्याण और मानवता का सम्मान है। मानवता को कलंकित और अपमानित करने के लिए धर्म की आड़ में आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग होता है तो उनका विरोध हम करते हैं। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में जाति, वर्ग विशेष को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां की है। यद्यपि हम उसको धर्मग्रंथ इसलिए नहीं मानते हैं क्योकि तुलसीदास जी ने बालकांड की शुरुआत में ही लिख दिया है कि स्वंतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाधा, भाषा निबंध आदि से रचितकर्ता है। जो पुस्तक स्वंतः सुखाय के लिए लिखी गई है हम उसे धर्म की पुस्तक के रूप में नहीं लेते हैं। लेकिन उन्होंने अपनी इस पुस्तक के माध्यम से जाति और अपमानों को इंगित कर टिप्पणी की है वह सभी जातियां हिंदू धर्म की ही हैं। अगर यह हिंदू धर्मग्रंथ है तो यह हिंदू जातियों को इंगित कर नीच जाति कहने का सर्टिफिकेट कैसे देती है।

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