
भारत में चोरों के गांव वाले कई राज्य हैं। मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, उत्तर प्रदेश इनमें से कुछ ही हैं। इनमें से सबसे बड़े तीन चोरों के गांव मध्य प्रदेश में हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये कदिया सांसी, गुलखेदी और हुलखेदी हैं। लेकिन, उत्तर प्रदेश से आ रही खबर सबको चौंका रही है। खबर है कि गोरखपुर में मोबाइल चोरों का एक गिरोह अपने 'कर्मचारियों' को एक कॉर्पोरेट कर्मचारी से भी ज्यादा सुविधाएं देता है।
'कर्मचारी-हितैषी कार्य वातावरण' देने वाले चोर गिरोह के बारे में सुनकर अजीब लग सकता है, लेकिन यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर रिपोर्ट की गई। यह गिरोह अपने सदस्यों को 15,000 रुपये मासिक वेतन, मुफ्त भोजन और यात्रा भत्ता देता है। टाइम्स ऑफ इंडिया की यह रिपोर्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसके बाद कई लोगों ने मजाक में पूछा कि क्या उन्हें भी मौका मिल सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस संगठित गिरोह का नेतृत्व झारखंड निवासी मनोज मंडल (35) करता है। यह गिरोह चोरी को एक व्यवसाय या नौकरी मानता है। गिरोह के दो सदस्यों, करण कुमार (19) और उसके 15 वर्षीय भाई को शुक्रवार रात गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार किया गया। उनके पास से 10 लाख रुपये के 44 मोबाइल फोन बरामद हुए।
पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि मनोज मंडल पर चार और करण पर दो आपराधिक मामले दर्ज हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि करण के नाबालिग भाई के आपराधिक रिकॉर्ड की जांच की जा रही है। गोरखपुर जीआरपी के एसपी संदीप कुमार मीणा ने कहा कि जांच में पता चला है कि मनोज प्रत्येक सदस्य को 15,000 रुपये मासिक वेतन देता था। गिरोह में नए लोगों को छोटे-मोटे चोरी के टारगेट दिए जाते हैं। एसपी ने कहा कि अगर वे सफल होते हैं, तो उन्हें गिरोह में शामिल कर लिया जाता है।
मनोज मंडल अपने गांव साहिबगंज से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को चुनता है। पुलिस के अनुसार, गिरोह के सदस्य अच्छे कपड़े पहनते हैं और धाराप्रवाह हिंदी बोलते हैं, ताकि वे सभी सार्वजनिक जगहों पर आसानी से घुल-मिल सकें और चोरी कर सकें। नए सदस्यों को तीन महीने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें उन्हें छोटे-मोटे टारगेट दिए जाते हैं। सफल होने पर ही उन्हें गिरोह में शामिल किया जाता है और मासिक वेतन के साथ नए काम दिए जाते हैं।
गोरखपुर, संत कबीर नगर, महाराजगंज और कुशीनगर के व्यस्त बाजार और रेलवे स्टेशन इस गिरोह के मुख्य ठिकाने हैं। पुलिस ने बताया कि इनका तरीका बेहद आसान, लेकिन कारगर है। सार्वजनिक जगहों पर लोगों से मोबाइल फोन चुराना, चोरी के फोन तुरंत दूसरे सदस्यों को देना, और फिर उन्हें सीमा पार बांग्लादेश और नेपाल भेजना। पुलिस ने इनका पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर जांच की। लगभग 200 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से गिरोह के सदस्यों की पहचान की गई। पुलिस का कहना है कि गिरोह के ज्यादातर सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया है और बाकी की तलाश जारी है।
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