
Etawah Bhagavatacharya Assault: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के दांदरपुर गांव में एक शर्मनाक घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में व्यासपीठ पर विराजमान कथावाचक मुकट मणि (मुक्त सिंह) को कथित तौर पर ब्राह्मण न होने के शक पर न सिर्फ पीटा गया, बल्कि उनकी चोटी काट दी गई, सिर मुंडवाया गया, नाक रगड़वाकर ग्रामीणों से माफ़ी मंगवाई गई और यहां तक कि पैर छुवाकर सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। हालांकि अब इस घटना में एक अहम मोड़ तब आ गया जब कथावाचक के एक ही नंबर के दो नाम वाले दो आधा कार्ड मिले। जिससे पुलिस भी पशाोपेश में है।
ग्रामीणों द्वारा आयोजन के लिए बुलाए गए कथावाचक मुकट मणि का कथन था कि वे ब्राह्मण हैं और वृंदावन-मथुरा से आए हैं। कथा शुरू होने के बाद एक ग्रामीण ने उन्हें पहचानते हुए दावा किया कि वे यादव जाति से हैं। यही बात पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। जैसे ही कथा समाप्त हुई, ग्रामीणों का गुस्सा भड़क उठा और कथावाचक व उनके दो साथियों—संत सिंह यादव और श्याम सिंह कठेरिया—को गांव में पकड़कर मारपीट की गई।
मुकुटमणि ने आरोप लगाया कि उनसे ₹25,000 नकद, एक चेन और अंगूठी भी जबरन छीन ली गई। घटना के समय न सिर्फ उन्हें बंधक बनाकर रखा गया, बल्कि बाइक की हवा निकालकर उनसे दोबारा हवा भरवाई गई और पूरे गांव में अपमानित किया गया।
सोमवार को पीड़ित मुकट मणि ने समाजवादी पार्टी के सांसद जितेंद्र दोहरे और विधायक राघवेंद्र गौतम के साथ एसएसपी से मुलाकात की। एसएसपी बृजेश कुमार श्रीवास्तव के आदेश पर केस दर्ज कर चार लोगों—निक्की अवस्थी, उत्तम अवस्थी, आशीष तिवारी और प्रथम दुबे—को गिरफ्तार कर लिया गया है। FIR में 50 अज्ञात लोगों को भी नामजद किया गया है।
मुकट मणि के पास दो आधार कार्ड मिलने से मामला और पेचीदा हो गया है। एक में नाम ‘मुकट मणि अग्निहोत्री’ और पता औरैया जिले का है, जबकि दूसरे में नाम ‘मुक्त सिंह’ और पता इटावा का। पुलिस इस आधार पर कथावाचक की असली पहचान की जांच में जुट गई है। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्होंने खुद को ब्राह्मण बताया था और बाद में भ्रम फैलाते हुए कभी खुद को वृंदावन, तो कभी मथुरा का निवासी बताया।
इस घटना ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा कि अगर तीन दिन में कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो समाजवादी पार्टी आंदोलन करेगी। उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए जातिगत अपमान को असंवैधानिक और खतरनाक करार दिया।
समाजशास्त्रियों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटना ने जातिगत असहिष्णुता की जड़ें उजागर की हैं। धार्मिक आयोजन में ऐसी हरकतें न सिर्फ कानून के खिलाफ हैं बल्कि भारतीय सामाजिक ताने-बाने के लिए भी खतरनाक हैं।
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