
UP vs Bihar ration system: भारत की सबसे बड़ी जन-कल्याण योजनाओं में से एक है सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System - PDS)। इस व्यवस्था के तहत देश के करोड़ों गरीब परिवारों को सस्ता अनाज, चीनी, मिट्टी का तेल और अन्य जरूरी वस्तुएं दी जाती हैं।
लेकिन सवाल यह है कि क्या हर राज्य इसे समान रूप से लागू करता है? क्या हर लाभार्थी को समय पर और सही मात्रा में राशन मिलता है? हमारी विशेष सीरीज़ “कहां ठीक, कहां फेल?” में आज बात करेंगे उत्तर प्रदेश और बिहार की, देश के दो बड़े राज्यों की जिनकी आबादी करोड़ों में है और जहां PDS सिस्टम लोगों की रसोई का आधार है।
LiveMint की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 तक:
इन आंकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश में इस सिस्टम को लेकर लोगों की नाराज़गी और अव्यवस्था ज़्यादा सामने आई थी। लेकिन एक बात और समझनी ज़रूरी है, शिकायतों की संख्या राज्य की जनसंख्या और डिजिटल जागरूकता पर भी निर्भर करती है। उत्तर प्रदेश में जनसंख्या ज़्यादा होने के कारण शिकायतें अधिक आना भी स्वाभाविक हो सकता है।
यह भी पढ़ें: Lucknow में घर खरीदने का मौका! LDA की अनंत नगर योजना में शुरू हुआ रजिस्ट्रेशन
आज के समय में पारदर्शिता और गड़बड़ी पर रोक लगाने का सबसे मजबूत तरीका है, डिजिटल सिस्टम। IndiaTV की एक रिपोर्ट में बताया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने राशन वितरण प्रणाली को आधार और बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन से जोड़ दिया है।
यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है क्योंकि इससे फर्ज़ी राशन कार्ड, डुप्लिकेट लाभार्थी और बिचौलियों की भूमिका कम हो जाती है।हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स यह भी दावा करती है कि,बिहार में यह प्रक्रिया अभी भी आंशिक रूप से लागू है। कुछ जिलों में बायोमेट्रिक प्रणाली काम करती है, लेकिन पूरी तरह से प्रभावी नहीं मानी जा रही।
LukmaanIAS के अध्ययन के अनुसार, साल 2004-05 में बिहार की PDS व्यवस्था में 91% तक राशन लीकेज हो रहा था। मतलब जितना अनाज भेजा जाता था, उसका 90% से ज़्यादा ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंचता था। लेकिन अच्छी बात ये है कि 2022-23 तक बिहार ने इस आंकड़े को घटाकर 26.5% तक ला दिया है। यानी व्यवस्था में सुधार तो हुआ है, लेकिन अब भी एक चौथाई राशन बीच में ही गायब हो जाता है।
भारत में दो तरह की राशन वितरण प्रणाली चल रही हैं:
NCAER (National Council of Applied Economic Research) की रिपोर्ट के अनुसार, NFSA मॉडल में औसतन 16.28% राशन लीकेज होता है। वहीं TPDS मॉडल में APL कार्ड धारकों में लीकेज – 35.3%, BPL कार्ड धारकों में – 32.9%, AAY (सबसे गरीब वर्ग) में – 5.1%, इस तुलना से ये समझ आता है कि NFSA मॉडल अपेक्षाकृत ज़्यादा प्रभावी है, लेकिन TPDS मॉडल में भी अगर निगरानी और टेक्नोलॉजी सही हो, तो असर दिखता है।
2022 की एक केंद्र सरकार द्वारा जारी NFSA Performance Index में:
अब जब हम यूपी और बिहार की तुलना करते हैं, तो हमें ये स्पष्ट होता है:
| पक्ष | उत्तर प्रदेश | बिहार |
| शिकायतें (2019) | 328 | 108 |
| डिजिटल बायोमेट्रिक कवरेज | 99%+ | अधूरा |
| राशन लीकेज (2004-2023) | उपलब्ध डेटा सीमित | 91% → 26.5% |
| स्कीम मॉडल | TPDS | NFSA |
| NFSA स्कोर (2022) | 0.897 (2nd) | 0.783 (7th) |
उत्तर प्रदेश ने टेक्नोलॉजी को अपनाकर पारदर्शिता बढ़ाने में तेज़ी दिखाई है, वहीं बिहार ने लीकेज को नियंत्रित करने में लंबा सफर तय किया है। लेकिन अब भी दोनों राज्यों में कई ज़िलों में असमानता, वितरण में गड़बड़ी और शिकायतों की अनदेखी जैसी समस्याएं मौजूद हैं।
यह भी पढ़ें: बस एक फॉर्म भरें और बेटी के खाते में जुड़ सकते हैं ₹1 लाख, फिर भी लोग कर रहे हैं गलती!
उत्तर प्रदेश में हो रही राजनीतिक हलचल, प्रशासनिक फैसले, धार्मिक स्थल अपडेट्स, अपराध और रोजगार समाचार सबसे पहले पाएं। वाराणसी, लखनऊ, नोएडा से लेकर गांव-कस्बों की हर रिपोर्ट के लिए UP News in Hindi सेक्शन देखें — भरोसेमंद और तेज़ अपडेट्स सिर्फ Asianet News Hindi पर।