
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कांग्रेस और मोहम्मद अली जिन्ना को भारत के सांस्कृतिक विभाजन और अंततः देश के बंटवारे का जिम्मेदार ठहराया। मुख्यमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम को लेकर किया गया समझौता किसी धार्मिक भावना का सम्मान नहीं था, बल्कि यह कांग्रेस की तुष्टीकरण राजनीति का पहला और सबसे खतरनाक प्रयोग था।
सीएम योगी ने कहा कि वंदे मातरम पर समझौता दरअसल अलगाववाद को बढ़ावा देने वाला कदम था। इससे सांस्कृतिक विभाजन गहरा हुआ और बाद में देश के बंटवारे की नींव पड़ी। उन्होंने कहा कि जब तक मोहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस में थे, तब तक वंदे मातरम को लेकर कोई विवाद नहीं था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस से अलग होने के बाद जिन्ना ने वंदे मातरम को मुस्लिम लीग की राजनीति का औजार बना लिया। गीत वही रहा, लेकिन उसका राजनीतिक एजेंडा बदल गया। जानबूझकर इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई।
सीएम योगी ने कहा कि 15 अक्टूबर 1937 को लखनऊ से जिन्ना ने वंदे मातरम के खिलाफ नारा दिया। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। इसके बाद 20 अक्टूबर 1937 को नेहरू द्वारा सुभाष चंद्र बोस को लिखे पत्र में यह कहा गया कि यह मुद्दा मुसलमानों को “आशंकित” कर रहा है। मुख्यमंत्री ने इसे कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति की खुली स्वीकारोक्ति बताया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 26 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस ने वंदे मातरम के कुछ अंश हटाने का निर्णय लिया। इसे उस समय “सद्भाव” का नाम दिया गया, लेकिन वास्तव में यह राष्ट्र चेतना की बलि थी। देशभक्तों ने प्रभात फेरियां निकालकर इसका विरोध किया, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व राष्ट्र के साथ खड़े होने के बजाय वोटबैंक के साथ खड़ा रहा।
सीएम योगी ने कहा कि 17 मार्च 1938 को जिन्ना ने मांग की कि वंदे मातरम को पूरी तरह बदला जाए, लेकिन कांग्रेस ने इसका कोई कड़ा विरोध नहीं किया। इससे मुस्लिम लीग का हौसला बढ़ा, अलगाववाद तेज हुआ और सांस्कृतिक प्रतीकों पर समझौते की शुरुआत हुई।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा कि वंदे मातरम का विरोध न तो धार्मिक था और न ही आस्था से जुड़ा। यह पूरी तरह राजनीतिक था। उन्होंने कहा कि 1896 से 1922 तक कांग्रेस के हर अधिवेशन में वंदे मातरम गाया जाता रहा। न कोई फतवा था, न कोई विवाद। खिलाफत आंदोलन तक भी यह गीत हर मंच पर गूंजता रहा।
सीएम योगी ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेता वंदे मातरम के समर्थक थे। समस्या मजहब से नहीं थी, बल्कि कुछ लोगों की राजनीति से थी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि 1923 में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान मोहम्मद अली जौहर ने पहली बार वंदे मातरम का विरोध किया। यह विरोध भी धार्मिक नहीं, बल्कि खिलाफत राजनीति से प्रेरित था। जब विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने पूरा गीत गाया, तो जौहर मंच छोड़कर चले गए।
सीएम योगी ने कहा कि मंच छोड़ना जौहर का व्यक्तिगत फैसला था, लेकिन कांग्रेस का झुकना उसकी नीति बन गया। कांग्रेस ने राष्ट्रगीत के पक्ष में मजबूती से खड़े होने के बजाय समितियां बनाईं और 1937 में तय किया गया कि केवल दो छंद गाए जाएंगे और वह भी अनिवार्य नहीं होंगे। इसे उन्होंने राष्ट्रीय आत्मसमर्पण करार दिया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा द्वारा जिस खंडित वंदे मातरम को मान्यता दी गई, वह भी कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति का परिणाम था। राष्ट्र ने गीत को अपनाया, लेकिन कांग्रेस पहले ही उसे काट चुकी थी।
सीएम योगी ने कहा कि वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। 1905 के बंग-भंग आंदोलन से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, यह प्रभात फेरियों, सत्याग्रहों और क्रांतिकारियों का मंत्र रहा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने वंदे मातरम को भारत की आत्मा बताया और अरविंद घोष ने इसे मंत्र कहा। मैडम भीकाजी कामा द्वारा फहराए गए पहले विदेशी तिरंगे पर वंदे मातरम लिखा था। मदनलाल ढींगरा के अंतिम शब्द भी वंदे मातरम थे।
सीएम योगी ने कहा कि वंदे मातरम के साथ किया गया समझौता केवल गीत का अपमान नहीं था, बल्कि भारत की राष्ट्रीय दिशा पर किया गया गहरा आघात था। उन्होंने चेतावनी दी कि आज भी कुछ राजनीतिक शक्तियां उसी विभाजनकारी सोच को दोहराने का प्रयास कर रही हैं।
अपने संबोधन के अंत में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वंदे मातरम का अर्थ केवल मातृभूमि को प्रणाम करना नहीं, बल्कि उसकी रक्षा, समृद्धि और गौरव का संकल्प लेना है। उन्होंने कहा कि तुष्टीकरण की ऐतिहासिक भूलों से सीख लेकर ही आत्मनिर्भर और विकसित भारत का निर्माण संभव है।
मुख्यमंत्री ने सदन से आह्वान किया कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के ‘आनंद मठ’ का अध्ययन कर राष्ट्र चेतना को समझा जाए और वंदे मातरम के 150 वर्ष को भविष्य के संकल्प के रूप में अपनाया जाए।
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