
Mahakumbh 2025: आस्था, परंपरा और संस्कृति को समेटे महाकुंभ प्रयागराज में चल रहा है। महाकुंभ में लाखों लोग रोज-ब-रोज आ रहे तो अपने साधु-संन्यासियों और साध्वियों के साथ अखाड़े पहले ही अपना डेरा डाल चुके हैं। अखाड़े न केवल धर्म और संस्कृति के प्रतीक हैं बल्कि डेरा के अंदर या बाहर अनुशासन कायम रहे इसके लिए कोतवाल की निगरानी में एक टीम होती है। हर अखाड़े की अपनी कोतवाली होती है और उसका प्रमुख होता है कोतवाल।
महाकुंभ में अखाड़े अपने अनुशासन को कायम रखने के लिए कोतवाल की नियुक्ति करते हैं। बड़े अखाड़े एक कोतवाल और चार सहायक कोतवाल नियुक्त करते हैं तो छोटे अखाड़े एक कोतवाल व दो सहायक कोतवाल पद की नियुक्ति करते हैं। कोतवाल, अखाड़ों का एक सम्मानित और जिम्मेदारी वाला पद है। कोतवाल की मुख्य जिम्मेदारी अखाड़े के अनुशासन को बनाए रखना और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। वह अखाड़े के संतों और साधुओं के लिए नियमों का पालन करवाने के साथ-साथ बाहरी लोगों की गतिविधियों पर भी नजर रखते हैं। कोतवाल यह सुनिश्चित करते हैं कि अखाड़े में किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता न हो और धार्मिक गतिविधियां सुचारू रूप से चलती रहें।
कोतवाल की पहचान उनके विशिष्ट वस्त्रों और उपकरणों से होती है। वह चांदी की मूठ वाली छड़ी लेकर चलते हैं। कुछ भाला या तलवार भी रखते हैं। कोतवाल अपने पास एक चिमटा रखते हैं। किसी भी इमरजेंसी में वह चिमटा बजाकर सूचना देते हैं। वह अपने अधिकार क्षेत्र के मामलों का निपटारा करने के लिए सक्षम है। वह दंड भी देता है। हालांकि, छोटे मामलों को तो वह मौके पर ही दंड देकर निपटा देता है लेकिन अगर कोई बड़ी आपराधिक वारदात है तो अखाड़ा के पंच बैठते हैं और फिर कोतवाल के साथ उस मामले को निपटाया जाता है यानि दंड सुनाया जाता है।
कोतवाल का कार्यकाल आमतौर पर महाकुंभ के आयोजन तक सीमित होता है। हालांकि, कुछ अखाड़े विशेष परिस्थितियों में कोतवाल का कार्यकाल बढ़ा सकते हैं।
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