103 साल के गांधीवादी और फ्रीडम फाइटर ने दी कोरोना को मात, 5 दिन थे हॉस्पिटल में एडमिट

दोरेस्वामी को जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवास्कुलर साइंस एंड रिसर्च में भर्ती किया गया था। 1918 में जन्मे दोरेस्वामी ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और 14 महीनों तक जेल में रहे।

Asianet News Hindi | Published : May 13, 2021 12:56 PM IST

ट्रेंडिग डेस्क.  कर्नाटक के प्रमुख गांधीवादी व स्वतंत्रता सेनानी (Gandhian and Freedom Fighter) एचएस दोरेस्वामी ( HS Doreswamy) ने 103 साल की उम्र में कोरोना वायरस (covid-19) को हराकर अस्पताल से घर लौट आए हैं। बुधवार सुबह उन्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्च किया गया। कोरोना संक्रमण के लक्षण मिलने के बाद दोरेस्वामी को जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवास्कुलर साइंस एंड रिसर्च, बेंगलुरु में भर्ती किया गया था।

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उनके एक फैमली मेंबर ने बताया कि पांच दिन पहले कोरोना के लक्षण मिले थे। उन्हें ज्यादा तकलीफ नहीं थी लेकिन सांस की समस्या के कारण  अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनका इलाज जयदेव इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ सीएन मंजुनाथ ने की।  मंजुनाथ  कार्डियोलाजिस्ट और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के दामाद हैं। 

1918 में हुआ था जन्म
हारोहल्ली श्रीनिवासैया दोरेस्वामी का जन्म 10 अप्रैल, 1918 को बेंगलुरु में हुआ था। वो भारत छोड़ो आंदोलन के साथ देश की आजादी के आंदोलन में कूदे। 1943 से 1944 तक उन्हें 14 महीने तक जेल में रखा गया था। सेंट्रल कालेज बेंगलुरु से विज्ञान में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। दशकों से कर्नाटक में नागरिक समाज के आंदोलनों में एक जाने-पहचाने व्यक्ति हैं। बेंगलुरु में झीलों को पुनर्जीवित करने का भी काम उन्होंने किया।

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मैसूर आंदोलन में भी लिया था भाग
उन्होंने मैसूर चलो आंदोलन में भी भाग लिया था। सेंट्रल कालेज बेंगलुरु से विज्ञान में स्नातक दोरेस्वामी ने शिक्षा के पेशे को अपनाया और पौरावाणी नाम से अखबार भी निकाला। बेंगलुरू के एक स्कूल में फिजिक्स और मैथ्स के टीचर एचएस दोरेस्वामी ने महात्मा गांधी के कहने पर जून 1942 में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे। 

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