ज्ञानवापी अकेली नहीं, दिल्ली की कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद पर भी विवाद, 27 हिंदू-जैन मंदिर तोड़कर बनाने का दावा

दिल्ली के महरौली में स्थित में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद है, जिस पर विवाद गहराया हुआ है। कुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर मौजूद एक शिलालेख में भी इस तथ्य का उल्लेख है कि यह मस्जिद वहां बनी, जहां पहले से 27 हिंदू और जैन मंदिर थे। 

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में ज्ञानवापी परिसर में विवादित ढांचे के सर्वे का काम पूरा हो चुका है और अब दोनों पक्ष इस मामले में अपनी-अपनी बात कोर्ट में रख रहे हैं।  लेकिन यह अकेला मामला नहीं है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में ऐसे कई और विवादित परिसरों को लेकर बहस शुरू हो सकती है। फिलहाल कुव्वत-उल-मस्जिद पर भी ऐसा ही विवाद बना हुआ है। 

दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में हिंदू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों को लेकर विवाद गहराया हुआ है। मामले की सुनवाई दिल्ली की कोर्ट में चल रही है। यहां भी कोर्ट ने स्टे देकर भगवान गणेश की मूर्तियों को मस्जिद परिसर से बाहर ले जाने पर रोक लगाई हुई है। हालांकि, कोर्ट ने परिसर के अंदर पूजा करने की इजाजत भी नहीं दी हुई है। यह पूरा घटनाक्रम अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक का है। 

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किसी मुस्लिम सुल्तान द्वारा भारत में बनवाई गई पहली मस्जिद!
दरअसल, महरौली में कुतुब मीनार स्थित है और इसके बगल में मस्जिद है। यह मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम नाम से मशहूर है। दावा किया जाता है कि किसी भी मुस्लिम सुल्तान द्वारा भारत में बनवाई गई यह पहली मस्जिद है। दावा यह भी किया जाता है कि मस्जिद में सैंकड़ों साल पुराने मंदिर का भी बड़ा हिस्सा है। इसके आंगन और  अन्य जगह की दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां और वास्तुकला की झलक स्पष्ट देखी जा सकती है। 

मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाया गया, दीवारें तो यही बता रहीं 
वैसे, कुतुबमीनार के इंट्री गेट पर एक शिलालेख है। इस पर स्पष्ट रूप से लिखा है कि मस्जिद वहां बनी, जहां पहले से  27 हिंदू और जैन मंदिर थे। मस्जिद के कई ढांचे, स्तंभ और दूसरे निर्माण इस तर्क को  बल देते हैं कि इसके निर्माण में मंदिर को तोड़ा गया। फिलहाल, खंडित  मूर्तियां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई के  संरक्षण में है। संभवत: खंडित होने की वजह से इनके  पूजा की अनुमति नहीं दी गई। 

कुतुब मीनार के साथ बनी कुव्वत-उल-मस्जिद 
इतिहासकारों के अनुसार, 1200 ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद शिहाबुद्दीन  उर्फ मुइजुद्दीन मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक  को दिल्ली की गद्दी पर बिठाया। कुतुबुद्दीन ऐबक  और उसके  उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार बनवाया। इसी समय कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण भी हुआ। लगातार इसका विस्तार भी होता रहा। लेकिन इस मस्जिद में जैन धर्म के भगवान तीर्थंकर ऋषभदेव, हिंदू देवी-देवता जिनमें भगवान विष्णु, गणेश जी, शिव जी, पार्वती जी, सूर्य देव आदि कई देवताओं की प्रतिमाएं भी मौजूद हैं। इनमें ज्यादातर मूर्तियां खंडित हैं। 

मूर्तियों का अपमान न हो, उन्हें संग्रहालय में रखा जा सकता है
नेशनल मान्युमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन तरुण विजय ने बीते मार्च महीने में भारतीय पुरातत्व विभाग यानी एएसआई को पत्र लिखकर कहा था कि यहां मस्जिद में रखी भगवान गणेश की दो मूर्तियों, एक उल्टा गणेश और दूसरा पिंजरे में गणेश को राष्ट्रीय संग्रहालय में सम्मानजनक स्थान दिया जाए। यहां पहले से ऐसी प्राचीन वस्तुएं रखी गई हैं। इसके बाद तरुण विजय ने संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखा और कहा कि यह शर्मनाक है कि मस्जिद परिसर में भगवान गणेश की मूर्तियां ऐसी अपमानजनक स्थिति रखी है। वहीं, एक मूर्ति ऐसी जगह है, जहां लोग आते-जाते हैं, जिससे भगवान के पैर लगते हैं। जबकि एक मूर्ति पिंजरेनुमा जाली में रखी है। इन्हें वहां से हटाकर संग्रहालय में रखवाया जा सकता है। 

मूर्तियां नहीं हटाई जाए, पूजा-अर्चना अनुमति देने के लिए अपील दायर की 
इसके बाद दिल्ली की साकेत कोर्ट में एक अपील दायर की गई, जिसमें पूजा-अर्चन के अधिकार का उल्लेख किया गया और संग्रहालय के सुझाव पर अपना पक्ष रखते हुए कहा गया कि मूर्तियों को कहीं विस्थापित नहीं किया जाए बल्कि, सम्मान सहित परिसर में उचित स्थान पर रखकर पूर्जा-अर्चना की अनुमति दी जाए। इससे पहले, बीते साल 9 दिसंबर 2021 को भी एक याचिका दिल्ली की एक कोर्ट में दायर की  गई थी। इसमें मंदिर और मूर्तियों को खंडित कर मस्जिद निर्माण किए जाने का हवाला देते हुए सभी बिखरी मूर्तियों को एक बार फिर स्थापित करने और पूजा-पाठ शुरू कराने की अनुमति देने की अपील की गई थी। हालांकि, तब कोर्ट ने याचिका को रद्द करते हुए कहा था कि अतीत की गलतियों के कारण मौजूदा समय में शांति भंग नहीं की जा सकती। 

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