होली (Holi 2022) के दौरान दामाद (Son in Law) को नए कपड़े भी पहनाए जाते हैं। यह कपड़े दामाद की अपनी पसंद के होते हैं। विदा नाम के इस गांव में दामाद के साथ यह परंपरा एक या दो दिन बल्कि पूरे चार दिन तक निभाई जाती है। इस अनोखी रस्म या परंपरा को किए जाने के पीछे का मकसद भी बिल्कुल अलग है।
नई दिल्ली। इस बार होली का पर्व 18 मार्च, शुक्रवार को है। यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में भी चर्चित है। देशभर में रंगोत्सव का यह पर्व बहुत ही धूमधाम, हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह पर्व भगवान कृष्ण और राधा के प्रेमोत्सव के तौर पर भी मनाते हैं। साथ ही, कुछ राज्यों में यह बसंत में नई फसल के आगमन और सर्दियों के अंत का प्रतीक भी है।
होली यानी धुलंडी या फिर रंगोत्सव फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष होलिका दहन 17 मार्च और धुलंडी का पर्व 18 मार्च को धूमधाम से मनाया जाएगा। हालांकि, होली के दौरान विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराएं भी हैं, जो बेहद प्राचीन हैं और लंबे समय से आज भी चली आ रही हैं।
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90 साल से हर वर्ष बिना रुके होली पर निभाई जाती है परंपरा
इसी क्रम में बात करते हैं महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गांव की। यहां आज भी अनोखी परंपरा मनाई जाती है। ग्रामीणों की मानें तो यह परंपरा करीब 90 साल से हर साल मनाई जाती है। यह गांव है बीड जिले की केज तहसील के विदा गांव की। दरअसल, बीड जिले के विदा गांव में लोग होली पर अजीबो-गरीब परंपरा का पालन आज भी करते हैं।
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गधे की सवारी के साथ नए कपड़े भी पहनाते हैं
यह परंपरा नए दामाद के साथ निभाई जाती है। इसमें दामाद को गधे की सवारी कराते हुए पूरे गांव में घुमाया जाता है। इस दौरान दामाद को नए कपड़े भी पहनाए जाते हैं। यह कपड़े दामाद की अपनी पसंद के होते हैं। विदा नाम के इस गांव में दामाद के साथ यह परंपरा एक या दो दिन बल्कि पूरे चार दिन तक निभाई जाती है। इस अनोखी रस्म या परंपरा को किए जाने के पीछे का मकसद भी बिल्कुल अलग है। यह सब गांव के नए दामाद की पहचान कराने के उद्देश्य से किया जाता है।
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तीन से चार दिन लगते हैं पहचान कराने में
गांव के नए नवेले दामाद की पहचान करने में तीन से चार दिन लगते हैं। इस दौरान गांव के लोग दामाद पर नजर रखते हैं। पूरी प्रक्रिया में यह निर्धारित किया जाता है कि दामाद जी होली के दिन गुम न हो जाएं। गधे की सवारी गांव के बिल्कुल बीच से शुरू होती है और गांव में स्थित हनुमान जी के मंदिर पर खत्म होती है।
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दामाद जी को कहीं जाने नहीं देते
दामाद इस परंपरा में शामिल हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाता है और इस दौरान उसे कहीं जाने भी नहीं दिया जाता। गांव वालों के बीच ऐसी मान्यता है कि इस अनोखी रस्म की शुरुआत आनंद राव देशमुख नाम के व्यक्ति ने की थी। वह इसी गांव के रहने वाले थे और तब से लगातार यह परंपरा चली आ रही है।
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