सार

कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) का कहना है कि जो दर्द, जो दहशत उन्होंने तब सहा वह बेहद खौफनाक थी। हम भगवान से प्रार्थना करेंगे कि भगवान किसी को ऐसा दुख-दर्द नहीं दे। हमें डराने के लिए शाम होते ही मस्जिदों में नारे लगने लगते थे। जैसे-अल्लाहू अकबर, हमको क्या चाहिए.. आजादी। ऐसे बहुत से नारे, जो हमें डराते थे। कश्मीर (Kashmir) में तब लगभग 3 लाख हिंदू थे। 

नई दिल्ली। अगर कोई आपको आपके अपने घर से गैरकानूनी तरीके से जबरदस्ती बाहर निकाल दे, तो आपको कैसा लगेगा। बहुत मुमकिन है आपको गुस्सा आए और यह गुस्सा जायज भी है। कोई आपको अपमानित करे तो आपका आक्रोश लाजिमी होगा। लेकिन क्या आपने कभी उनके बारे में सोचा है, जिन्हें आज से करीब 32 साल पहले उनके अपने ही घर, अपने कश्मीर से जबरदस्ती डरा-धमकाकर निकाल दिया गया। अपने ही देश में उनके साथ बेगानों सा सुलूक हुआ। 

यह असल वाकया हुआ कश्मीरी पंडितों के साथ 1990 में, जो आज अलग-अलग राज्यों में शरणार्थी की तरह  बसे हुए हैं। कुछ के हालात तो इतने खराब हैं कि उनका दर्द सुनकर आप शायद रो पड़ें। वे अपनी व्यथा सबसे कह  चुके, मगर उनका हल न तो केंद्र सरकार निकाल रही और न ही संबंधित राज्य सरकार। फिलहाल, हम आपको राजस्थान के कश्मीरी पंडित परिवार के दर्द को बता रहे हैं। 

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मस्जिदों से नारे लगाए जाते थे 
बता दें कि कश्मीरी पंडितों और घाटी में तब के हालात पर फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) शुक्रवार, 11 मार्च को रिलीज हुई है। दर्शकों को फिल्म की कहानी को पसंद आ रही है। फिल्म देखकर वे भावुक हो रहे हैं। फिल्म में अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती के अभिनय की तारीफ हो रही है। आज भी कश्मीरी पंडितों का कहना है कि जो दर्द, जो दहशत उन्होंने तब सहा वह बेहद खौफनाक थी। हम भगवान से प्रार्थना करेंगे कि भगवान किसी को ऐसा दुख-दर्द नहीं दे। हमें डराने के लिए शाम होते ही मस्जिदों में नारे लगने लगते थे। जैसे-अल्लाहू अकबर, हमको क्या चाहिए.. आजादी। ऐसे बहुत से नारे, जो हमें डराते थे। कश्मीर में तब लगभग 3 लाख हिंदू थे। 

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हर तरफ से मुसलमानों की भीड़ नारे लगाती आती थी 
कश्मीरी पंडितों के मुताबिक, उस समय को याद कर आज भी हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तब जो दहशत का आलम था, चारों तरफ से मुसलमानों की भीड़ नारे लगाते हुए आती थी और मुठ्ठी भर हिंदू बीच में फंसे हुए हैं। न वहां से निकलते बनता न घर में रहते बनता था। भीड़ में जिसके हाथ जो लगा वह लेकर बैठ गया। भीड़ देखकर हिंदू पूजा-पाठ शुरू कर देते, प्रार्थना करने लगते कि भगवान उनकी रक्षा करें। पूरा दिन और पूरी रात बहुत दुखदायी होती थी। इसे बयां नहीं किया जा सकता। 

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उस रात  जो हुआ वह पहले से तय था 
उस डर के माहौल में हम तिल-तिलकर मर रहे थे। हमने सोचा क्यों हम यहां पड़े हैं, इससे अच्छा तो है कि हम भारतवासी हैं तो दूसरे राज्य में जाकर रहें और इस तरह हम जयपुर में आ गए। 19 जनवरी 1990 को जो हुआ वह पूर्व नियोजित था। लाखों मुस्लिमों की भीड़ सड़क पर थी, यह देखकर हिंदू लोग घर छोड़कर जैसे-तैसे भागने लगे। जो नहीं जाते, उन्हें चुन-चुनकर मार दिया जाता था। आज भी हम वहां रहने नहीं जा सकते। हमारा मकान है, मगर हम वहां रह नहीं सकते। अपने ही देश में हम शरणार्थी बने हुए हैं। मैं सिर्फ एक पैंट कमीज में भागकर आया, कैसे आया था नहीं पता। हम यहां अपनी आजीविका कैसे चला रहे यह सिर्फ हम ही जानते हैं।