जानें क्या है ‘असम के पिरामिड’ का इतिहास, UNESCO की वर्ल्ड हेरिटेज में सरकार ने भेजा नाम

हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि यूनेस्को के 52 विरासत स्थलों में से 'असम का पिरामिड' देश का एकमात्र नामांकन है। पीएम मोदी ने खुद इसका चयन किया है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें इसकी जानकारी दी गई है।

Satyam Bhardwaj | Published : Jan 21, 2023 10:59 AM IST / Updated: Jan 21 2023, 04:49 PM IST

ट्रेंडिंग डेस्क : 'असम का पिरामिड' नाम से फेमस अहोम युग का 'मैदाम्स' (Maidams) यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हो सकता है। भारत की तरफ से इस बार एकमात्र नाम चराइदेव जिले में शाही परिवारों के विश्राम स्थल 'मैदाम्स' का भेजा जा रहा है। इसकी जानकारी असम (Assam) के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने शनिवार को दी। मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि 'असम का पिरामिड' कहे जाने वाले इस 'मैदाम' का चयन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi ) ने किया है।

यूनेस्को की अस्थाई लिस्ट में 'मैदाम्स'

हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय सांस्कृतिक मामलों के मंत्रालय की तरफ से उन्हें इस बात की जानकारी दी गई है। यह नामांकन आज रात पेरिस में यूनेस्को कार्यालय में जमा किया जाएगा। बता दें कि 'मैदाम्स' पहली बार अप्रैल 2014 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल किया गया था।

 'मैदाम्स' का इतिहास

1228 में अहोम राजा चु लुंग सिउ-का-फा ने चराइदेव की स्थापना की थी। यह अहोम राज्य की पहली राजधानी थी। चराइदेव मैदाम्स अहोम के पैतृक देवताओं का स्थान है। यहां राजाओं और रानियों की समाधियां बनी हुई हैं। इसे ‘असम का पिरामिड’ भी कहा जाता है। चराइदेव की पहाड़ियों में इतनी कब्रें यानी मैडेम्स हैं। इसी वजह से इस जगह की तुलना मिस्र के पिरामिडों से की जाती है। यह जगह मध्ययुगीन काल का एक अनोखा स्थल है। यहां 150 से ज्यादा मैदाम्स हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 30 ही असम राज्य के पुरातत्व विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तरफ से संरक्षित हैं।

चराइदेव की वास्तुकला

चराइदेव की वास्तुकला देखने में काफी चमत्कारिक लगती है। गुंबददार आकार और भूमिगत मेहराब मिट्टी के टीलों से ढके हुए हैं। यही कारण है कि ये पहाड़ी की तरह दिखाई देते हैं। हर पहाड़ी की चोटी पर ईंटों और पत्थरों से बने छोटे और खुले मंडप हैं, जिन्हें ‘चो-चाली’ कहा जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि यहां राजा और रानियों के साथ ही उनके नौकर-चाकर, पालतू जानवर और यहां तक की कीमती समानों को भी दफनाया गया है। इसी वजह से इस जगह को कई बार लूटा गया है और कब्जा भी किया गया है। जिससे यह क्षतिग्रस्त हो गया है।

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