जापान में एक नए तरह के टॉयलेट पॉट का फोटो वायरल हो रहा है, जिसमें सिंक भी इनबिल्ट है। सिंक से हाथ धोने के बाद उसका गंदा पानी अगले फ्लश के लिए काम आएगा। इसकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।
टोक्यो। जब भी असाधारण रचनात्मकता और आविष्कार की बात आती है, तो बिना शक जापान सबसे आगे होता है। इस बार भी यह देश पानी के संरक्षण मामले में शानदार कदम उठाने जा रहा है और यह एक आर्ट इंस्टालेशन के जरिए हो रहा है। बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को प्रभावित करने वाली अन्य गतिविधियों के साथ दुनिया ने संसाधनों का संरक्षण करते हुए स्थायी जीवन पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। बिगड़ती स्थितियों को सुधारने के लिए आपने कई अनूठे इनोवेशन देखे होंगे।
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक धूम मचाती पोस्ट वायरल हो रही है, जिसमें जापान के एक टॉयलेट पॉट का नया डिजाइन पेश किया गया है, जो आने वाले समय के लिए जरूरी और टिकाऊ जीवन का सबसे आदर्श उदाहरण है। यह फोटो माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर Fascinating नाम के ट्विटर अकाउंट हैंडल से पोस्ट किया गया है, जो खूब पसंद भी किया जा रहा है और यह वायरल हो रहा है।
दरअसल, इस पोस्ट से पर्यावरण के अनुकूल टॉयलेट की फोटो शेयर की गई है। यह फोटो जापानी टॉयलेट को दिखा रही है, जो सिंक से जुड़ा है। बगल के सिंक में हाथ धोने के बाद आप अगले फ्लश के लिए गंदे पानी का उपयोग कर सकते हैं। इस पोस्ट के कैप्शन में लिखा है, कई जापानी शौचालयों पर हैंड वॉश सिंक लगा हुआ है। इससे आप अपने हाथ धो सकेंगे और अगले फ्लश के लिए पानी का फिर से इस्तेमाल भी कर पाएंगे। ऐसा करने से जापान हर साल लाखों लीटर पानी बचा सकता है।
विश्व स्तर पर हो इस डिजाइन का इस्तेमाल
यह पोस्ट शेयर किए जाने के बाद सोशल मीडिया पर धूम मचा रहा है। इसे अब तक करीब डेढ़ लाख यूजर्स ने पसंद किया है, जबकि हजारों यूजर्स ने इसे रीट्वीट किया है। वहीं, सैंकड़ों यूजर्स ने इस पर दिलचस्प कमेंट किए हैं और इस अनूठे इनोवेशन की तारीफ की है। एक यूजर ने देश के नए विचारों के बारे में कुछ और जानकारी जोड़ी। उसने बताया, जापान हर साल लगभग 80 ट्रिलियन लीटर पानी का उपयोग करता है। यदि हम मान लें कि लाखों लीटर प्रति वर्ष 10 मिलियन तक की संख्या है, तो इससे जापान में 0.00001% की पानी की बचत होगी। एक अन्य यूजर ने लिखा, वे एक अतिरिक्त वॉश सिंक के लिए भी सामान बचाते हैं। मुझे लगता कि इस डिजाइन का उपयोग विश्व स्तर पर किया जाना चाहिए।
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