Inside Report: अजनाला से निकले 160 साल पुराने मानव कंकाल , देखें क्या कहती है रिसर्च

इतिहासकारों का मानना है कि ये कंकाल भारत-पाक बंटवारे के दौरान मारे गए लोगों हैं। हालांकि कुछ इस उन सैनिकों के कंकाल बता रहे हैं जिनकी मौत 1857 विद्रोह के दौरान हुई। 

Gaurav Shukla | Published : Apr 28, 2022 11:22 AM IST

अनुज तिवारी
वाराणसी:
पंजाब के अजनाला से निकले 160 साल पुराने मानव कंकाल गंगा घाटी के शहीदों के 2014 की शुरुवात में पंजाब के अजनाला कस्बे के एक पुराने कुंए से कई मानव कंकालों के अवशेष निकले। कुछ इतिहासकारों का मत है की ये कंकाल भारत पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान दंगों में मारे गए लोगो के है, जबकि विभिन्न स्रोतों के आधार पर प्रचलित धारणा है की ये कंकाल उन भारतीय सैनिकों के है, जिनकी हत्या 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने कर दी थी। 

प्रमाणों की कमी के चलते चल रही है बहस 
हालांकि , वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर गहन बहस चल रही है । इस विषय की वास्तविकता पता करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपोलाजिस्ट डॉ जे यस . सेहरावत ने इन कंकालों का डीएनए और आइसोटोप अध्ययन , सीसीऍमबी हैदराबाद , बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट लखनऊ और काशी हिन्दू विश्विद्यालय के वैज्ञानिको के साथ मिलकर किया।

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निकला निष्कर्ष शहीद लोग गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले
वैज्ञानिकों की दो अलग अलग टीम ने डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस किया और निष्कर्ष निकाला की शहीद लोग गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले थे। यह अध्ययन 28 अप्रैल , 2022 को फ्रंटियर्स इन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ । इस शोध में 50 सैंपल डीएनए एनालिसिस और 85 सैंपल आइसोटोप एनालिसिस के लिए इस्तेमाल किये गए।" डीएनए विश्लेषण लोगों के अनुवांशिक सम्बन्ध को समझने में मदद करता है , जबकि आइसोटोप विश्लेषण भोजन की आदतों पर प्रकाश डालता है।

दोनों शोध विधियों ने किया इस बात का समर्थन
दोनों शोध विधियों ने इस बात का समर्थन किया कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के नहीं थे। बल्कि , डीएनए सीक्वेंस यूपी , बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ मेल खाते हैं , इस टीम के एक वरिष्ठ सदस्य सीसीएमबी के मुख्य वैज्ञानिक और सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स , हैदराबाद के निदेशक डॉ . के . थंगराज ने बताया । बीएचयू जंतु विज्ञान के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे जिन्होंने डीएनए अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ने जोर देकर कहा की इस अध्ययन के निष्कर्ष भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के इतिहास में एक प्रमुख अध्याय जोड़ देंगे।

इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता और प्राचीन डीएनए के एक्सपर्ट डॉ नीरज राय ने कहा की इस इस टीम द्वारा किया गया वैज्ञानिक शोध इतिहास को साक्ष्य आधारित तरीके स्थापित करने में मदद करता है । इस शोध से मिले परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुरूप हैं, जिसमें कहा गया है कि 26 वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक पाकिस्तान के मियां - मीर में तैनात थे और विद्रोह के बाद उन्हें अजनाला के पास ब्रिटिश सेना ने पकड़ लिया और मार डाला। यह बात इस शोध के पहले लेखक डॉ जगमेंदर सिंह सेहरावत ने कहा। काशी हिन्दू विश्विद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के निदेशक प्रोफ एके त्रिपाठी ने कहा , " यह अध्ययन ऐतिहासिक मिथकों की जांच में प्राचीन डीएनए आधारित तकनीक की उपयोगिता को दर्शाता है।" 

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