अयोध्या में 36 जातियों के है अपने अलग मंदिर, पुजारी हो या बावर्ची सभी एक ही जाति के

Published : Nov 27, 2019, 11:09 AM ISTUpdated : Nov 27, 2019, 11:11 AM IST
अयोध्या में 36 जातियों के है अपने अलग मंदिर, पुजारी हो या बावर्ची सभी एक ही जाति के

सार

शान्ति और सद्भाव का प्रतीक अयोध्या का एक रूप ये भी है। यहां तकरीबन 36 जातियों का अपना-अपना मंदिर है। मंदिरों के दरवाजे पर ही लिखा  होता है कि ये मंदिर किस जाति का है

अयोध्या(Uttar Pradesh ). शान्ति और सद्भाव का प्रतीक अयोध्या का एक रूप ये भी है। यहां तकरीबन 36 जातियों का अपना-अपना मंदिर है। मंदिरों के दरवाजे पर ही लिखा  होता है कि ये मंदिर किस जाति का है। इतिहासकारों के मुताबिक़ इस मंदिरो के बनवाने के शुरुआत 18 वीं शताब्दी के अंत से 19 शताब्दी के शुरुआत में हुई। आमतौर पर जाति और धर्मो के नाम पर बांटने का आरोप राजनैतिक लोगों पर लगता है, लेकिन अयोध्या के साधु-संत इसे जाति-बिरादरी की एकजुटता बताते हैं।

प्राचीनतम पौराणिक नगरी अयोध्या में हर तरह की विशेषताएं व विवधताएँ मिलती हैं। अयोध्या की एक बड़ी विविधता ये भी है कि वहां तकरीबन 36 जातियों के अपने मंदिर हैं। सभी मंदिर के दरवाजे पर ये लिखा है कि ये मंदिर किस जाति समाज का है। ये मंदिर प्राचीन तो हैं लेकिन ज्यादा प्रसिद्ध नहीं है। लेकिन ये अयोध्या में चर्चा का केंद्र जरूर रहते हैं। 

तकरीबन 36 जातियों के हैं मंदिर 
अयोध्या में जातिगत मंदिरों की बात करें तो उसमे मुख्य रूप से कुर्मी समाज पंचायती मंदिर, हलवाई समाज मंदिर, पासी समाज मंदिर,राजपूत मंदिर, निषाद मंदिर,मुराव मंदिर,हेला मंदिर,अहीर समाज मंदिर,जैन मंदिर समेत अनेक मंदिर हैं। इसमें जैन मंदिर में दर्शनार्थियों की संख्या सबसे अधिक रहती है। जैन मंदिर कारसेवक पुरम के पास ही स्थित है। इस मंदिर में पूरे देश से जैन धर्म के लोग दर्शन के लिए आते रहते हैं। 

जैन को छोड़कर हर मंदिर में विराजमान है रामलला की मूर्ति 
इन विभिन्न समाज के मंदिरों में रामलला की मूर्ति विराजमान है। अकेले जैन मंदिर को छोड़ दिया जाए तो सभी मंदिर के प्रमुख स्थान पर भगवान राम विराजमान हैं। इसके ज्यादातर मंदिरों में भगवान राम के आलावा उस समाज के इष्ट देव की मूर्तियां भी हैं। 

पुजारी से लेकर बावर्ची तक सब उसी जाति के  
इन मंदिरों की कई विशेषताएं भी हैं। ये मंदिर जिस भी जाति का होगा उसमे पुजारी भी इसी जाति का मिलेगा। ऐसा लगभग उन सभी मंदिरों में मिलेगा जो विभिन्न जातियॉं द्वारा बनवाई गयी है। यही नहीं ज्यादातर मंदिरों में साफ़-सफाई वाला और बावर्ची भी उसी जाति और धर्म का है। 

18 शताब्दी के अंत व 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ के हैं ज्यादातर मंदिर 
अयोध्या की प्राचीन इमारतों की जीर्णोद्धार के लिए लम्बे समय से संघर्ष कर रहे ओम प्रकाश सिंह का कहना है कि इसमें से ज्यादातर मंदिर 18 वीं शताब्दी के अंत व 19 शताब्दी के प्रारम्भ की हैं। उन्होंने बताया कि सबसे पहले निषाद बिरादरी का बनने का उल्लेख मिलता है। उसके बाद अन्य जातियों के लोगों की भी अपना मंदिर बनवाने के प्रति रूचि जागृत हुई। 1920 तक अयोध्या में लगभग 36 जातियों के मंदिर बन गए। 
 

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