लोकगायक के परिवार में पत्नी और दो बेटियां हैं। पत्नी सपना भी आंबेडकरी मिशन में साथ ही काम करती रही हैं जबकि बेटियां, बीटीसी की पढ़ाई कर रही हैं।
लखनऊ। बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के मिशन और दलित राजनीति के लिए जीवन के 36 साल खपा देने वाला एक लोक कलाकार और बहुजन समाज को एकजुट करने वाले कांशीराम का 'सिपाही' पिछले कुछ महीनों से बेहद तंग हालात में जिंदगी गुजर-बसर कर रहा है। जिस दलित समाज को राजनीतिक ताकत बनाने के लिए सारा जीवन लगा दिया उसकी राजनीति से लोगों ने बहुत कुछ हासिल किया। इसी ताकत ने कई अनजान चेहरों को संसद, विधानसभा की दहलीज तक पहुंचाया। सरकारें बनवाई और तमाम मंत्री-मुख्यमंत्री बने। मगर वक्त के साथ किशोर 'पगला' पीछे ही छूट गए।
किशोर पगला ने एशियानेटन्यूज को बताया कि रोजी-रोजगार के नाम पर फिलहाल उनके पास कुछ नहीं है। बस वो 36 साल से आंबेडकरी संगठनों के लिए सामाजिक-राजनीतिक गाने बनाते और गाते चले आ रहे थे। बदले में इन्हीं संगठनों से उन्हें थोड़ी बहुत आर्थिक मदद मिलती थी जिससे उनका घर-परिवार चलता था। लेकिन कोरोना महामारी के बाद से ये बंद है। लोकगायक के परिवार में पत्नी और दो बेटियां हैं। पत्नी सपना भी आंबेडकरी मिशन में साथ ही काम करती रही हैं जबकि बेटियां, बीटीसी की पढ़ाई कर रही हैं। मूलत: यूपी में मऊ जिले का लोकगायक काफी समय से परिवार समेत लखनऊ में रहता है।
कुछ दलित-आदिवासी बुद्धिजीवियों ने भी उनकी परेशानी को साझा करते हुए मदद की अपील की है। असिस्टेंट प्रोफेसर सुनील कुमार सुमन ने लिखा, "अपनी युवावस्था में जब लोग करियर को बनाने-संवारने में लगते हैं, तब किशोर कुमार पगला मान्यवर कांशीराम साहेब के मिशन-आंदोलन से जुड़कर अपना सर्वस्व बहुजन समाज के नाम कर चुके थे। तब से लगातार वे बिना रुके, बिना थके अपने गीत-संगीत के माध्यम से समाज में चेतना फैलाने का काम करते आ रहे हैं।"
"सामाजिक-सांस्कृतिक गोलबंदी की बदौलत जो राजनीतिक ताक़त तैयार होती है, उसमें ऐसे प्रतिबद्ध कलाकारों की भूमिका कहीं से कम नहीं होती। आज किशोर कुमार पगला आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं। कुछ समय पहले वे अपना जवान बेटा भी खो चुके हैं। इस कठिन दौर में हम सबकी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने ऐसे धुनी, समर्पित व मिशनरी कलावंतों की यथासंभव मदद करें। यही बहुजन कल्चर है। यही अंबेडकरवाद है।" अपील पर तमाम लोग मदद के लिए आगे आने लगे हैं।
कांशीराम से मुलाकात ने बदल दिया मकसद
36 साल पहले बसपा संस्थापक कांशीराम से मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद किशोर पगला का मकसद ही बदल गया। उन्होंने लोकगायकी से दलित-आदिवासियों के बीच डॉ. आंबेडकर और कांशीराम की विचारधारा को पहुंचाने और उन्हें राजनीतिक रूप से गोलबंद करने का मिशन हाथ में ले लिया। तब से लगातार बामसेफ, बसपा और दूसरे आंबेडकरी संगठनों के लिए रैलियों, सभाओं और कार्यक्रमों में दलित समाज को राजनीतिक रूप से एकजुट कर कर रहे हैं। किशोर राजनीतिक गाने ही गाते हैं जिनकी चुनाव और आंबेडकरी सम्मेलनों में काफी मांग है। बसपा का आंदोलन ऐसे ही गानों के जरिए लाखों करोड़ों अशिक्षित दलित समाज तक पहुंचा। दलित समाज में पगला के गानों की लोकप्रियता का अंदाजा यूट्यूब के अलग-अलग चैनलों पर मौजूद उनके गानों के व्यूज से भी समझा जा सकता है।
(जेएनयू में किशोर पगला: फोटो यूट्यूब)
लॉकडाउन ने बढ़ा दी मुश्किलें
तीन साल पहले ही जवान बेटा खो चुके किशोर पगला ने हमें बताया, "चीजें किसी तरह चल रही थीं, लेकिन कोरोना की महामारी और लॉकडाउन के बाद उनकी हालत बदतर हो गई। पहले प्रोग्राम मिल जाते थे और जीवन चलता रहता था। मगर लॉकडाउन और फिर अनलॉक के बाद सबकुछ ठप पड़ा है।" बसपा की सरकार में या पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की ओर से मदद के सवाल पर लोकगायक का दर्द निकल पड़ा। उन्होंने कहा, "लोगों ने मेरा इस्तेमाल किया। अब मैं क्या ही कहूं।"
लगता है सिर्फ मेरा इस्तेमाल हुआ
यूपी में बसपा की कई बार सरकार बनी। सैकड़ों विधायक-सांसद बने। किसी तरह की मदद के सवाल पर किशोर पगला ने बताया, "2009 में मुझे उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी में सदस्य बनाया गया। महीने के 25 हजार मिलते थे। लेकिन मेरा जो काम था उसमें खर्च 50 हजार होते थे। सरकार के साथ वह भी खत्म हो गया।" लेकिन सवाल भी किया कि बसपा के विधायकों या कोओर्डिनेटर्स से मदद ही मिली होती तो आज भला ऐसी हालत क्यों होती?
(गीत गाते किशोर पगला। फोटो: यूट्यूब)
अपनों ने साथ छोड़ा, वक्त ने छीना होनहार बेटा
किशोर पगला के लिए वक्त भी कम बेरहम नहीं है। उन्होंने बताया, "इकलौते बेटे से उम्मीद थी। वह होनहार भी था। लेकिन वक्त ने उसे भी छीन लिया।" आरोप लगाया कि "2017 में मेरे जवान बेटे गुलशन की मुरादाबाद में हत्या की गई। मैंने न्याय के लिए किस-किस का दरवाजा नहीं खटखटाया। मगर मेरी बात किसी ने नहीं सुनी।" गुलशन की मौत को यूपी पुलिस ने सुसाइड केस के तौर पर दर्ज किया। दलितों को राजनीतिक रूप से एकजुट करने में किशोर पगला जैसे लोक गायकों की बहुत बड़ी भूमिका रही है। पर लगता है मुश्किल हालात ने उन्हें समय के साथ हाशिए पर डाल दिया है।