
लखनऊ: पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) पर 5 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया है। वहीं पीएफआई से अलग-अलग माध्यमों से जुड़े लोगों पर भी निगरानी बढ़ा दी गई है। अब उन लोगों की कुंडली खंगाली जा रही है जो पीएफआई की अगुवाई में CAA नागरिकता संसोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस कवायद को इसलिए शुरू किया गया जिससे कि प्रतिबंध लगने के बाद किसी नाम से कोई संगठन न खड़ा कर पाए। ऐसा माना जाता है कि SIMI पर प्रतिबंध लगाने के बाद ही पीएफआई वजूद में आया था। बताया जाता है कि सिमी से जुड़े सदस्य जिस राह पर चल रहे थे। ठीक उसी राह पर पीएफआई भी चल रहा थी।
सुरक्षा एजेंसियां PFI कार्यकर्ताओं की तैयार कर रही सूची
बता दें कि जो पदाधिकारी कभी सिमी में कर्ताधर्ता हुआ करते थे बाद में वही लोग पीएफआई में भी शामिल थे। पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की काफी दिनों से मांग की जा रही थी। लेकिन सरकार ने पहले इसके खिलाफ तमाम साक्ष्य एकत्र कर रही थी। हाल ही में प्रतिबंध से पहले एनआईए व ईडी समेत विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के छापों में पीएफआई के ज्यादातर पदाधिकारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। यूपी में भी प्रदेश अध्यक्ष समेत कई पदाधिकारी फिलहाल जेल में हैं। सुरक्षा एजेंसियां उन पीएफआई कार्यकर्ताओं की सूची तैयार कर रही है जो नागरिकता संसोधन कानून के विरोध में की गई हिंसा में गिरफ्तार किए गए हैं।
PFI पर 5 सालों के लिए लगा प्रतिबंध
बताया जा रहा है कि इनमें ज्यादातर लोग जमानत पर बाहर आ गए। जिसके बाद अब एलआईयू को इन लोगों पर कड़ी नजर बनाए रखने के लिए कहा गया है। इन लोगों द्वारा की गई हर गतिविधी पर अब एलआईयू की नजर रहेगी। पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने से पहले जिन कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया था। उनमें से अधिकतर को पाबंद कर करके छोड़ दिया गया है। वहीं गंभीर मामलों में गिरफ्तार पीएफआई के कार्यकर्ताओं से पूछताछ की जा रही है। बताया जा रहा है कि पश्चिमी यूपी में मेरठ और मध्य यूपी में लखनऊ के आसपास के जिलों में पीएफआई की पैठ मजबूत है। ऐसे में देश विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए सरकार द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाया गया है।
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