ताजमहल के बंद कमरों की जांच को लेकर जानिए क्या है इतिहासकारों का मानना

ताजमहल के बंद कमरो की जांच का मुद्दा इन दिनों खासा चर्चाओं में है। हालांकि इतिहासकार भी इसी पक्ष में हैं कि इन कमरों की जांच की जानी चाहिए। उनका कहना है कि अगर जांच से मन की शंका दूर होती है तो इसमें हर्ज ही क्या है। 
 

Gaurav Shukla | Published : May 10, 2022 3:54 AM IST

आगरा: ताजमहल के 22 बंद कमरों की जांच को लेकर उच्च न्यायालय में दायर याचिका इन दिनों खासा चर्चाओं में हैं। इतिहासकारों के बीच भी इसको लेकर विमर्श जारी है। इतिहासकार व साकेत महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. महेंद्र पाठक की ओर से सवाल उठाए गए हैं कि आखिर ताजमहल के 22 कमरों में ऐसा क्या छुपा है जिसको कई वर्षों से छिपाया जा रहा है। फिर यदि मुगलकार इतना ही समृद्ध था तो ईरान या फिर इराक में कोई ताजमहल या कुतुबमीनार क्यों नहीं है। 

इतिहासकार जांच के पक्ष में 
उनका कहना है कि ताजमहल वास्तव में भोलेनाथ का मंदिर है। इसे तेजोमहालय के नाम से ही जाना जाता था। इस पर मुगल आक्रांता ने कब्जा कर इसे मकबरा बनवा दिया। मुगलों ने भारत में सांस्कृतिक आक्रमण किया और अनेकों मंदिरों को तोड़ा। इस बीच उन्होंने इतिहासकार पीएन ओक की पुस्तक का भी जिक्र किया। कहा गया कि उसमें जो तथ्य दिए गए हैं सिर्फ उन्हीं की जांच मात्र से स्पष्ट हो जाएगा कि ताजमहल वास्तव में शंकर जी का मंदिर था या नहीं। वहीं कई अन्य इतिहासकार भी इस बात के पक्ष में हैं कि आखिर जांच में हर्ज ही क्या है। अगर किसी बात को लेकर कई लोगों के जहन में शंका है तो उसकी जांच हो जाने से क्या दिक्कत है। जांच में सच खुद ब खुद निकलकर सभी के सामने आ जाएगा। 

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मुगलों से पहले भी हुआ संगमरमर का इस्तेमाल
इतिहासकार इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित करते हैं कि बार-बार कहा जाता है कि मुगलों ने ही संगमरमर का प्रयोग प्रारंभ किया था। हालांकि हजारों साल पहले पुराने माउंटआबू स्थित दिलवाड़ा के जैन मंदिर में भी संगमरमर का उपयोग किया गया था। मुगलों के द्वारा अनेकों ऐसे मंदिरों को तोड़ा गया और उन पर कब्जा किया गया। इसी में आगरा का तेजोमहालय भी है। लिहाजा इसकी जांच अवश्य होनी चाहिए। 

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