एक्सपर्ट व्यू: राजनीतिक पहचान के लिए है शिवपाल-अखिलेश की लड़ाई, एक होने के कोई आसार नहीं

hindi.asianetnews.com ने वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से बात कर यह जानने की कोशिश की कि अखिलेश-शिवपाल के बीच सुलहनामें में अभी कितनी संभावना है। 

लखनऊ (Uttar Pradesh). अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच रिश्तों में कड़वाहट की बर्फ फिलहाल पिघलने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। हालांकि, अखिलेश ने मीडिया में एक बयान देकर ये संकेत जरूर दिए थे, लेकिन वो भी सिर्फ एक राजनीतिक बयान जैसे ही रह गए। शिवपाल ने भी कहा था कि राजनीति में संभावनाएं हमेशा रहती हैं। उनके इस बयान के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि चाचा-भतीजे फिर से साइकिल की सवारी कर सकते हैं। hindi.asianetnews.com ने वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से बात कर यह जानने की कोशिश की कि अखिलेश-शिवपाल के बीच सुलहनामें में अभी कितनी संभावना है। 

पहले जान लें कैसे अखिलेश-शिवपाल के बीच बढ़ी दूरियां
साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम कुनबे में वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी। इसके बाद अखिलेश ने पार्टी पर अपना राज कायम कर लिया। इसी वजह से अखिलेश और शिवपाल के बीच दूरियां काफी बढ़ गईं। हालांकि, पार्टी की नींव रखने वाले मुलायम सिंह यादव सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दोनों के बीच सुलह-समझौते की काफी कोशिशें कीं, लेकिन सफलता नहीं मिली। मुलायम को जहां पार्टी को आगे ले जाने में उनके साथ कंधे से कंधा मिलकर चलने वाले अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव से लगाव था। वहीं, दूसरी ओर पुत्रमोह भी उनके रास्ते में आड़े आ गया। नतीजा ये हुआ कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल ने अपने समर्थकों के साथ खुद का राजनीतिक दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बना दिया।

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एक्सपर्ट का क्या है कहना
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ रतनमनि लाल कहते हैं, अखिलेश व शिवपाल दोनों नेताओं द्वारा हाल ही में दिए बयानों से समाजवादी कुनबे में फिर से एकता बनने के आसार जरूर दिखे थे। लेकिन वो महज राजनीतिक बयान थो। दोनों ही नेताओं द्वारा इस बात का खंडन किया जा चुका है। शिवपाल की पार्टी की ओर से तो यहां तक बयान आ गया कि उनके संगठन को कमजोर करने के लिए ये बात फैलाई जा रही है। मेरा मानना है कि दोनों के एक होने की तब तक कोई संभावनाएं नहीं हैं जब तक दोनों पक्ष थोड़ा झुकेंगे नहीं। जहां तक परिवार की बात है तो अगर इसपर कोई संकट आता है तो सभी लोग मिलकर समस्या सुलझा लेंगे। लेकिन अखिलेश व शिवपाल की लड़ाई राजनीतिक पहचान की है। इसमें दोनों पक्षों के एक होने की संभावनाएं काफी कम है।

वो कहते हैं, धर्मेंद्र यादव सपा के मजबूत अंग हैं। उनके द्वारा दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता करने की खबरें आ रही थीं। अगर ऐसा है तो ये भी सम्भव है कि धर्मेंद्र मुलायम सिंह के कहने पर ऐसा कर रहे हों। क्योंकि मुलायम द्वारा अखिलेश और शिवपाल को मिलाने के कई गंभीर प्रयास किए जा चुके हैं। 

'सभी के लिए' शब्द शिवपाल के लिए काफी नहीं 
वरिष्ठ पत्रकार रमेश तिवारी के मुताबिक, अखिलेश का बयान था कि हमारे दरवाजे सभी के लिए खुले हैं। शिवपाल समाजवादी पार्टी की नींव के साथी रहे हैं। ऐसे में "सभी के लिए" शब्द शिवपाल के लिए पर्याप्त नहीं है। दूसरी बात, दोनों पार्टियों की तरफ से एक होने का खंडन किया जा चुका है। ऐसे में इसकी संभावनाएं न के बराबर हैं। अपर्णा का कैंट से टिकट काटना कहीं न कहीं समाजवादी कुनबे में सब कुछ ठीक नहीं होने का दावा कर रहा है। अपर्णा मुलायम की बहू हैं। कहीं न कहीं अपर्णा व शिवपाल दोनों मुलायम सिंह से जुड़े रहे हैं। मेरा मानना है कि अपर्णा के टिकट कटने की वजह यही हो सकती है।

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